यह रचना एक लघु कहानी का रूप है
जिन्हे आज हम अपना दुश्मन दिखाई देते है
उस बुरे वक्त को वो शायद कभी का भूल गए
साँस लेना भी शरीफ़ों ने जब दूभर था किया
सारे नफरत से भरे सीने भी खुशी से फूल गए
कोई तब पास खड़ा होंने से भी हिचकता था
सुकूं के दिन कभी ना आएँगे ऐसा लगता था
चमन के माली ने तब खुद से किया वादा था
उसका तो गुल को कुचलवाने का इरादा था
सभी ने जोश में मिलकर थे पैने हथियार किए
हर कोई लगता था जैसे एक ख़ंज़र को लिए
जिस भी चौखट पे गए दरवाजे सबने बंद किए
बड़े योद्धा भी खड़े थे चुपचाप अपने होंठ सीए
खुदा की रहमत ने लेकिन असर दिखाया था
बुरे वक्त में एक सच्चा साथी चला आया था
ऐसे षडयन्त्रों को उसने भी उमर भर झेला था
इस मतलबी दुनियाँ में वो भी बस अकेला था
उसने जब हाल सुना तो मदद का ठान लिया
एक अकेले हुए मुसाफिर का हाथ थाम लिया
सच की शक्ति ने सदा उन दोनो का साथ दिया
न्याय की जीत हुई व पापियों ने सन्ताप किया
जीवन के कड़वे सचों ने फ़िर अपना काम किया
दोनो के अपनों ने फ़िर रिश्तों का अपमान किया
कष्ट में जन्में स्नेह और श्रद्धा को वो क्या समझेंगे
जिन्होने माँ सीता को भी यहाँ पर बदनाम किया.
शिशिर मधुकर
यथार्थ का सटीक विश्लेषण ,…….बहुत खूब !!
Thanks Nivatiya ji for your words
Apne swarth…damb mein mein ham kya kya tabaah kar dete…nahin jaante…aajkal jaada yahi ho raha….marvellously captivating….
Thanks Babbu ji for your lovely comment.
जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारो ………….. खुदा पर भरोसा हो तो वो खुद साथी बन कर आ जाता है, बहुत अच्छे मधुकर जी !!
सर्वजीत आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद