पान मशाला सिगरेट गुटखा
जिसके भी मुँह में है अटका
कर रहा मजाक वह निज से
मौत नजदीक आ रही इससे
शौक शौक लोग खाते जहर
कितनों का घर गया उजड़
कितने बच्चे हो गए अनाथ
कितनों का हुवा सत्यानाश
रोज करते है मेहनत मजदूरी
खाते तम्बाकू सिगरेट तंदूरी
बमुश्किल है दो जून की रोटी
कहते है उनकी किस्मत खोटी
हर पल भले रहे पैसे की तंगी
स्कूल न जा सकें बच्चे अड़भंगी
नहीं छोड़ते है तम्बाकू सिगरेट
खरीदते है, चाहे जो भी हो रेट
भिज्ञ सभी, इससे होता कैंसर
समझाने का नहीं कोई असर
डॉक्टर खुद जब सेवन करते
फिर दुसरे किससे सिख लेते
युवाओं को चढ़ी नशे की यारी
दूर कैसे हो लाईलाज बीमारी
युवा शक्ति का यह कैसा क्षय
जिन्हें न रहा सामाजिक भय
गायक अभिनेता या हो माडल
जिनकी स्टाईल का होता नकल
सबकी है सामूहिक जिम्मेदारी
नशा मुक्त हो नव पीढ़ी हमारी।।।।
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✍सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”✍
सुरेंद्र जी आप अपनी रचना मे हमेशा कोई गहन मुद्दा या कोई समाजिक बुराईयो को दर्शाते है ।
जो आपका प्लस पाइंट है ।
काबिले तारीफ है वो रचना जिसमे यथार्थ हो।
जो किसी को कुछ सिखाती हो ।
बहुत बढ़िया ।
धन्यवाद mam मेरी इस तरह की रचना के अवलोकन और पसंद करने हेतु!
अपने बहुत ही अच्छी कविता लिखी है जिसको में सिर्फ एक ही शब्द में कह सकता हू “झक्कास ” ,”सुपर डुपर हिट “l
राजीव भाई, मेरी कविता का अवलोकन कर मुझे अपनी अमुल्य राय से अवगत कराने हेतु आपका सतसत आभार…
बीमारी न हो तो अच्छा है
छोटी हो तो भी ठीक है
छोटी होकर जानलेवा हो
कतई ठीक नहीं
सामाजिक विषय पर लिखने के लिए धन्यवाद I
विजय कुमार सिंह जी यकीन मानिये, मुझे आपकी प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी। यूँही अपने विचारों से और मेरी रचनाओं पर अपने सुझाव देते रहें। धन्यवाद आपका।।
आज की सच्चाई , एक गंभीर मुद्दा ,अति सुन्दर
मनोज जी, अति आभार आपका…….आप यूँही अपनी प्रतिक्रिया से मुझे अवगत कराते रहे।। आपका धन्यवाद….!
अति उत्तम………….
शिशिर मधुकर जी चरण स्पर्श….
सुन्दर सन्देशपरक रचना !
मीना जी, आपके स्नेह के लिए अति आभार…..!
यथार्थ को मुखर करती खूबसूरत रचना …….!
निवातियाँ जी, आशीर्वाद देने के लिए अति आभार…..!
आपकी रचना मे समाज सुधार का कोई ना कोई संदेश होता है ……………. बहुत अच्छे सुरेन्द्र जी !!
धन्यवाद सर्वजीत जी आपको इस खुबसूरत सी प्रतिक्रिया के लिएलिए…
.aap aisa kyoon likhte ho bhai ki nasha ho jaaye or kaam se jaaye…ooper se aap kahte laa ilaaj…ha ha ha….kamaal karte aap…laajwaab….
बब्बू जी जो देखता हूँ वाही लिख देता हूँ…मेरी कोई कल्पनाशीलता नहीं…बस आँखों के सामने जो देखा, लिपिबद्ध कर दिया
समाज की गंभीर समस्या को दर्शाती हुई अच्छी कविता है
रिंकी राउत जी, आपके स्नेहमय टिप्पड़ी के लिए धन्यवाद….!