परम्परा मे धर्म बसता है
जैसे पत्थर में शिल्प
शिल्प में खूबसूरती बसती है
और बसते हैं भगवान
भगवान में बसती है आस्था
और आस्था में विश्वास
विश्वास सफलता की कुंजी हैं
पत्थर शिल्प की कुंजी
फिर क्यों हम-तुम “पत्थरदिल”
सुनकर उखड़ जाते हैं ?
I am a post graduate in Political Science and Hindi.
My hobbies are reading, writing and visiting historical places.
13 Comments
Shishir "Madhukar"21/05/2016
मीना जी अद्भुत. जब कोई उपयुक्त शिल्पकार नहीं मिलेगा तो दिल पत्थर रह ही जाएगा. लेकिन हर पत्थरदिल को भी सदा अपने सन्तराश की तलाश हमेशा रहती है और बुरा मानना उनकी तड़प ही तो है. कहने का सुंदर अंदाज़ .
मीना जी, पत्थर दिल आस्था का विषय हो सकती और आस्था के धरातल पर पूजा जा सकता है पर पत्थरदिल नहीं, पत्थर की पूजा होती है पर वही पत्थर सिर पर गिरने पर मौत हो जाती है,,, मेरे समझ से पत्थरदिल का कुछ और ही अर्थ है…….
अपना अपना नजरिया है सुरेन्द्र जी आप को पत्थर का नकारात्मक पहलू दिखा वही मुझे सकारात्मक. पत्थर पर की गई शिल्पकारी से ताजमहल भी बनता है और दिलवाड़ा के मन्दिर भी.उसी तरह कठोर हृदय प्राणी के मन में भी भावुकता का वास हो सकता है. रचना पढ़ने और उस पर आप की अमूल्य राय के लिए हार्दिक धन्यवाद .
मीना भरद्वाज मैडम मुझे ऐसा लगता है की शायद कोई कितना भी कठोर हो पर कही न कही एक soft corner होता है, फिर उसे पत्थर दिल क्यों कहा जाये। मेरे कहने का आशय यह था। निश्चित रूपसे पत्थर पर शिल्पी ऐसा आकार देता है जिससे वह पूज्यनीय हो जाता है पर पत्थर ऐसा होने देता है तब। यही बात इंसानी पहलू के साथ भी है। मैंने उपर की पंक्ति लिखी थी उसमे बस एक ही बात कहना छह रहा था की पत्थरदिल का आशय शायद कुछ और है……..
mam आदर पूर्वक कहूँगा की कविता को जिस रूप में मै समझ पाया उसी के आधार पर प्रतिक्रिया दिया, आप इसे मेरा आपके प्रति किसी अनादर भाव को न समझें। आपकी रचनाओं को मै निरंतर देख रहा हूँ जिसमे आपकी कल्पनाशीलता अत्यंत ही गहरी है।
सुरसति के भण्डार की बड़ी अपूरब बात ।
ज्यों खरचे त्यों त्यों बढ़े बिन खरचे घटि जात।।
विद्या रुपी विचार साझा करने से ज्ञान बढ़ता है यही पढ़ा है किताबों में .आप के विचार साझा करने पर प्रसन्नता हुई सुरेन्द्र जी !
मीना जी अद्भुत. जब कोई उपयुक्त शिल्पकार नहीं मिलेगा तो दिल पत्थर रह ही जाएगा. लेकिन हर पत्थरदिल को भी सदा अपने सन्तराश की तलाश हमेशा रहती है और बुरा मानना उनकी तड़प ही तो है. कहने का सुंदर अंदाज़ .
रचना का भाव सुन्दर शब्दों में निरुपित करने के लिए हार्दिक आभार शिशिर जी !
मीना जी क्या बात है
शुक्रिया काजल जी !
Waaaaaaaaaahhhhhhh……….
आभार शर्मा जी !
मीना जी, पत्थर दिल आस्था का विषय हो सकती और आस्था के धरातल पर पूजा जा सकता है पर पत्थरदिल नहीं, पत्थर की पूजा होती है पर वही पत्थर सिर पर गिरने पर मौत हो जाती है,,, मेरे समझ से पत्थरदिल का कुछ और ही अर्थ है…….
अपना अपना नजरिया है सुरेन्द्र जी आप को पत्थर का नकारात्मक पहलू दिखा वही मुझे सकारात्मक. पत्थर पर की गई शिल्पकारी से ताजमहल भी बनता है और दिलवाड़ा के मन्दिर भी.उसी तरह कठोर हृदय प्राणी के मन में भी भावुकता का वास हो सकता है. रचना पढ़ने और उस पर आप की अमूल्य राय के लिए हार्दिक धन्यवाद .
मीना भरद्वाज मैडम मुझे ऐसा लगता है की शायद कोई कितना भी कठोर हो पर कही न कही एक soft corner होता है, फिर उसे पत्थर दिल क्यों कहा जाये। मेरे कहने का आशय यह था। निश्चित रूपसे पत्थर पर शिल्पी ऐसा आकार देता है जिससे वह पूज्यनीय हो जाता है पर पत्थर ऐसा होने देता है तब। यही बात इंसानी पहलू के साथ भी है। मैंने उपर की पंक्ति लिखी थी उसमे बस एक ही बात कहना छह रहा था की पत्थरदिल का आशय शायद कुछ और है……..
mam आदर पूर्वक कहूँगा की कविता को जिस रूप में मै समझ पाया उसी के आधार पर प्रतिक्रिया दिया, आप इसे मेरा आपके प्रति किसी अनादर भाव को न समझें। आपकी रचनाओं को मै निरंतर देख रहा हूँ जिसमे आपकी कल्पनाशीलता अत्यंत ही गहरी है।
सुरसति के भण्डार की बड़ी अपूरब बात ।
ज्यों खरचे त्यों त्यों बढ़े बिन खरचे घटि जात।।
विद्या रुपी विचार साझा करने से ज्ञान बढ़ता है यही पढ़ा है किताबों में .आप के विचार साझा करने पर प्रसन्नता हुई सुरेन्द्र जी !
बहुत ही बढ़िया रचना मैम…….
तहेदिल से धन्यवाद अलका जी !