एक दिन उठाया था बीड़ा मैंने दुनिया की सोचने की , यूँ सोच ही रहा था कि दोस्त बोला बृज तुम पागल हो !
झगड़ रहे थे कुछ लोग मेरे गली में इक दिन , सुलझाने की सोच ही रहा था कि दोस्त बोला बृज तुम पागल हो !
इक दिन आरोप भी लगे थे मुझ पर यूँ ही बेवजह , फ़रियाद की सोच ही रहा था कि दोस्त बोला बृज तुम पागल हो !
बीच सड़क पर तड़प रहा था इक बार शख़्स कोई , इमदाद की सोच ही रहा था कि दोस्त बोला बृज तुम पागल हो !
छेड़ रहे थे सरेआम इक लड़की को कुछ मनचले , पुलिस को बुलाऊँ सोच ही रहा था कि दोस्त बोला बृज तुम पागल हो !
मैं सही था या दोस्त मेरा उस वक्त , ये बात पूछने की सोच ही रहा था कि दोस्त बोला बृज तुम वाकई पागल हो !
मैं शायद सही था सच था खुद में सोचने की सोचूं , कि याद आया वही जो दोस्त कहा था बृज तुम पागल हो
.. .. .. बृज
सटीक व्यंग…………………
शुक्रिया आपका
Kya baat iss kataaksh ki…
जी शुक्रिया. बाहोत बाहोत