ना पूछ मेरे यारा किस कद्र तुमपे प्यार आता है
हमे तेरी नफरत भरी नजर पे भी प्यार आता है
कर लो जितना कर सको नजर अंदाज तुम
तेरी इस अदा पर भी हमे अब नाज आता है
पास आ नहीं सकते हम दूर तुम से जा नहीं सकते
अपनी इस बेबसी पे हमे रह रह के मलाल आता है
आज बनकर रह गए है हम तमाशा–ऐ–बाज़ीगर जमाने में
कभी थे नूर तेरी आँखों का, वो बीता जमाना याद आता है !
ना पूछो अब तुम हाल-ऐ-दिल क्या है, इस तन्हाई में “धर्म” का
कभी नवाजा था वफ़ा के खिताब से, वो लम्हा आज भी याद आता है ।।
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डी. के. निवातियॉ
निवातियाँ जी रचना सुधार मांगती है. यदि यारों की बात है तो फिर तेरी का उपयोग सही नहीं है इत्यादि.jeena dushwaar hota hai. aataa hai theek nahin hai.
मै भी शिशिर जी से सहमत हूँ, प्रथम पंक्ति और बाद की पक्न्तियो का सामजस्य थोडा अलग हो जा रहा है……..बाद की पंक्तियाँ किसी एक व्यक्ति विशेष से प्यार को दर्शाती है………..
वैसे सर बहुत अच्छा लिखा है आपने……..!
त्रुटि संज्ञान में लाने के लिए आप दोनों सुधि जनो का ह्रदय से आभार, गलती के माफ़ी चाहूंगा क्योकि रचना सुद्धिकरण के लिए ड्राफ्ट बॉक्स में थी जो गलती से प्रकाशित हो गई थी !
अभी सुधार कर दिया गया है, बेहतरी के लिए मार्गदर्शन करे !
thought is very nice Nivatiyaan jee ………………………. जिससे मोहब्बत करो उसकी हर अदा पसंद आती है चाहे वो गुस्सा हो या गाली दे, सब कुछ अच्छा लगता है !!
आपकी प्रेम भरे वचनो के लिए धन्यवाद सर्वजीत जी ….!!
अति सुन्दर रचना निवातियाँ जी !
सराहना के लिए धन्यवाद मीना जी !
Now it is alright and nice.
Thanks Shishir Ji
सदा की तरह…..अति उत्तम….
बब्बू जी आपके प्रशंशनीय वचनो के लिए धन्यवाद !!