शहर
मुझे शहर रास न आया ,
जिसमें फै ली अद्भूत माया ।
शहरों को लिया आगोश में
पश्चिमी कपड़े और पहनावे ने
आधा नग्र नारी शरीर हुआ ।
मुझे शहर रास न आया ,
जिसमें फै ली अद्भूत माया ।
आधा नग्र नारी शरीर ही
बाधक है देश की तरक्की में,
भविष्य, हर बच्चा बेकार हुआ ।
मुझे शहर रास न आया ,
जिसमें फै ली अद्भूत माया ।
जिस्म को दिखाने की खातिर
पहनती वस्त्र कम शरीर पर
रेप सा भयानक रोग शुरू हुआ ।
मुझे शहर रास न आया ,
जिसमें फै ली अद्भूत माया ।
पहन कर भडक़ीले कपड़े
निकलती सडक़ों पर अकेले
देखें उन्हें तो देव भी हीलजां ।
मुझे शहर रास न आया ,
जिसमें फै ली अद्भूत माया ।
यह समस्या शहर की नहीं अपितु समाज की है, और आपने एक ही बिंदु पर कुछ ज्यादा फोकस किया है जो भी उचित नहीं है……
नवलजी…आपने शहर लिखा शायद उसके पीछे कारण बहुत व्यापक है…आज कल गाँव में भी ऐसा ही कुछ है कई जगह…पर बात मानसिकता की है…हरेक अपनी सीमा को न लांघे चाहे वो बोलचाल हो..व्यवहार हो….या पहरावा…तो बहुत कुछ सही हो सकता है….हम सब की त्रासदी यह की हम न तो अपनी संस्कृति को पूरी तरह से अपनाते है न पश्चिमी को…दिखाने को कुछ और मन से कुछ और….भ्रूण हत्या सब के सामने ज्वलंत उद्धारण है…सोच हमारी आगे नहीं जा रही…दिखने में हम दूसरों से आगे दिखाना चाहते बस….इस लिए ज़रूरी है आत्म मंथन…चिंतन…जो हम नहीं करते…