प्रेमी –
वो वक्त लौट आता काश जो गवा दिये हमने अश्क बहाने मे,
तुम्हे पागलो की तरह खत लिखते रहे,
वक़्त सारे बित गए तुम्हे दिल के अरमान सुनाने मे,
महज इतनी मुश्किले न थी प्यार निभाने मे ,
शायद लगी है जितनी मुश्किले तुम्हे भुलाने मे ।।
प्रेमिका –
मुझे भूलने की कोशिश तो सिर्फ तुम्हारी थी ,
तुम्हारी मोहब्बत मे तो जान भी बसी हमारी थी ।
तुमसे ही सिखा मैने प्यार करना ,
अगन इस दिल मे लगायी तुमने,
सिखा तुम्ही से सावन मे भी जलना ।
मुझे भुलाने की महज तुम कोशिश भी मत करना,
हर ऑधियो से लड़ कर आउंगी मै ,
तुम्हारी चाहत के लिए,
मुझे तो है बस तुम्हारे साथ चलना । ।
काजल सोनी
काजल जी इस बार भाव तो अच्छे हैं लेकिन रचना कई जगह अच्छे फ्लो के लिए सुधार मांगती है. जैसे दुसरे वक्त की जगह यदि आप, पल सारे बीत गए इस्तेमाल करे, mahaz hata kar, itni bhi mushkile naa thi pyaar nibhane me, shaayad lagi hai jitni tumhe bhulaane me. repetition of mushkil can be avoided .
doosre para me bhi kuch anaawshyak shabd hataae jaa sakte hai.
काजल भावनायें तो बखूबी उभरी है…….. मगर उन्हें लयबद्ध तरीके से अभिव्यक्त करने में न्याय नहीं हो पाया है …शिशिर जी का सुझाव सरहानीय है ……रचना एक बार अवलोकन मांगती है !
आप दोनो का धन्यवाद । मै कुछ दिनो से रचना से दुर थी शायद यही कारण है कि रचना मे कमी ही कमी आ गई ।मेरी कोशिश रहेगी इस की दुर करने की ।
आपके सत्य वचनो का पुन: धन्यवाद
Kaajalji…sundar bhaav as usual….Jo oopar gunijan vachan bole hain unko dhyaan deejiyeaga…aap bahut achha likhti hain…
आपको एक बात और कहूँगा, अपनी कल्पनाशीलता को खतों तक सिमित मत करइये mam, आप अगर अच्छी कविता लिखना चाहती है तो और भी पहलू और विषयो पर लिखिए।। मुझे ऐतराज नहीं है आप कुछ भी लिखे पर एक मानवीय सम्बन्ध के कारन मेरी आपको सलाह है आप ख़त के साथ साथ लेखनी को कुछ और मुद्दों की ओर मोड़े।।।