हास्य कविता
एक बार मै कविता पाढ करने गया
एक कवि सम्मेलन में।।
वहाँ भीड़ के आगे पंडाल था बौना
एक पर एक श्रोता थे ठुसे।
जैसे ही मैंने कविता पढना शुरू किया
चारों तरफ चलने लगे लात घुसे।
अफरा तफरी में कोई इधर भागा कोई उधर
कुछ लोग मंच की तरफ दौड़े
कवि गण पतली गली से निकल गए
केवल वहीँ रह गए जो थे थोड़े चौड़े।
एक महिला चीखती चिल्लाती आई
बोली आपकी पत्नी, आपको कैसे झेलती है।
आपके बोलने से ये भूचाल आया,
आपको कविता छोड़ कुछ और नहीं सूझती है।
खुदा न खस्ता यदि मेरे पति होते आप
कब का दे चुकी होती जहर।
अंतर्मन मेरा बोला,
सचमुच में आप हमारी पत्नी होती!
मै अब तक खुद ही गया होता मर।।
कविता पाठ हुए बिना ही
कवि सम्मेलन का हो गया सत्रावसान।
मै समझ नहीं पाया क्या गलती हुयी मुझसे
क्यों कविता पाठ में आया व्यवधान।।
किसी तरह जान बचा कर मैं बाहर आया
तभी एक मोहतरमा मेरे पास आयीं।
प्यार से अभिवादन की, थोडा मुस्कुरायीं।
बोलीं- क्या आप अपना एक फोटो मुझे देंगे।
जिज्ञासा भाप मेरी, बोली घबराईये मत
आपके फोटो का दुरूपयोग नहीं करेंगे।
मेरा एक 2 साल का लड़का है जो
कभी कभी बहुत तंग करता है।
समझाने का असर नहीं होता उसपर
वह केवल भालू और लंगूर से डरता है।।
आगे से जब वह तंग करेगा
आपके फोटों से उसे डराउंगी।
आप के फोटो से साक्षात लंगूर
का अहसास कराऊँगी।
आप जैसे इंसानी लंगूर को देखकर ही
आज इतनी मची भगदड़।
सनक चढ़ी है केवल कविता की
कुछ भी लिख करते आप गड़बड़………
.
……
सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”
मै इस रचना के माध्यम से हास्य व्यंग विधा के साथ कितना न्याय कर पाया, आप सुधिपाठक हमे अवश्य अवगत कराएँ। इससे मुझे कुछ और रचना करने में सहूलियत और मार्गदर्शन मिलेगा…..
हा हा हा….क्या कमाल करते हैं आप व्यंग में भी….लाजवाब….
धन्यवाद बब्बू जी….यूँही उत्साहवर्धन करते रहें।।।।
बहुत बढ़िया……… कवियों की जिंदगी होती कुछ ऐसी है
मनिंदर जी, आपको धन्यवाद…..
सटीक व्यंग………………..
महती धन्यवाद मधुकर जी…..
सुरेंद्र जी सचमुच बहुत बढ़िया
काजल जी, यूँही उत्साहवर्धन देते रहें आप, आपका शुक्रिया….
आप की हास्य रचना हँसाने मे सफल है सुरेन्द्र जी
मीना भरद्वाज जी, आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपको दिल की गहराई से आभार…..
जी बहुत ही बढिया लिखा है आपने
धन्यवाद आपकोंआपकों…….!
सुरेन्द्र बहुत ही खूबसूरती से हास्य व्यंग संजोया है…….लेकिन आपकी क्षमता के अनुरूप रचना में वो लय नहीं आ पायी वस्तुत: जो होनी चाहिए थी ……यक़ीनन आप उसे कर सकते है !!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका !!
Nivatiya जी, मै तो कबीर की इस दोहे में विस्वास करता हूँ…निंदक नियरे राखिये आगन कुटी छवाय।।
आप गुरूवर इसी तरह अपना गुरूत्व से हमे अनुग्रहित करते रहे, मै खुद भी उतना संतुष्ट नहीं हूँ रचना से, और आप यकीन करे, इसमें अवश्य सुधार करूँगा।।।
आप की हास्य रचना बहुत बढ़िया है…….
अलका जी, स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिये कोटि कोटि बंदन….और आभार…