कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे
कत्ल करने वाले, अख़बार देखते रहे|
तेरी रूह को चाहा, वो बस मै था
जिस्म की नुमाइश, हज़ार देखते रहे||
मैने जिस काम मे ,उम्र गुज़ार दी
कैलेंडर मे वो, रविवार देखते रहे||
जिस की खातिर मैने रूह जला दी
वो आजतक मेरा किरदार देखते रहे||
सूखे ने उजाड़ दिए किसानो के घर
वो पागल अबतक सरकार देखते रहे ||
कारवाँ गुजर गया, गुबार देखते रहे
Nice lines…..
बहुत आभार अनीश जी
नीरज जी रचना की प्रथम पंक्ति “कारवाँ …….” का उपयोग कर आपने आगे अच्छा लिखा है.
शिशिर जी बहुत बहुत आभार आपका
बेहतरीन रचना ……अपनो बात को कहने मे सौ फीसदी कामवाब हुऐ हो ।
बस आप सब का साथ का असर है जो लिख पाता हूँ
true and marvelous lines……..
शुक्रिया सुरेंद्र जी आपका
Bahut khoobsoorat…
bahut bahut aabhar babbu ji