आदमी को आदमी से , है लड़ाती यह सियासत |
रक्त निर्दोषों का हर दम, है बहाती यह सियासत |
नफरतों के बीज बोती , हर नगर , हर गांव में ,
खुशनुमा , बस्ती को , है जलाती यह सियासत ||
आदेश कुमार पंकज
नाम : आदेश कुमार पंकज
जन्म तिथि : ३०.०६ 1963
जन्म स्थान : शाहजहाँपुर (उ .प्र .)
शिक्षा : एम ० एस - सी० ( गणित शास्त्र ) एम ० ए० ( अर्थ शास्त्र ) बी० एड०
साहित्यिक परिचय : अनेकों कहानी व् कविताएँ विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित | आकाशवाणी लखनऊ से बाल कविताएँ प्रचारित | अनेकों कवि सम्मेलनों कि अध्यक्षता व् संचालन |
पुरस्कार : अखिल भारतीय वैश्य समाज शाहजहाँपुर द्वारा वैश्य रत्न से सम्मानित | कई कवि सम्मेलनों में विशेष सम्मान |
माननीय शिक्षा मंत्री भारत सरकार श्रीमती स्मृति ईरानी द्वारा सम्मानित |विधालय प्रबंधन द्वारा लगातार आठ वर्षों से सम्मानित |
वर्तमान में आदित्य बिरला पब्लिक स्कूल , रेनुसागर , सोनभद्र (उ ,प्र .) में प्रवक्ता गणित शास्त्र के पद पर कार्य रत |
संपर्क : जूनियर ४५ - ए रेनुसागर ,सोनभद्र (उ.प्र.)- २३१२१८
मोब .नंबर . ९४५५५६७९८१
4 Comments
Shishir "Madhukar"17/05/2016
आज के परिपेक्ष्य में तो अधिकता लोग यही कर रहे है. लेकिन राजनेता हमें वैसे ही मिलते है जैसा समाज है
सियासत लड़ाती है…सही है…पर क्या इसके ज़िम्मेदार हम नहीं हैं कहीं भी….हम जानते हैं तो बार बार हम धोखा क्यूँ खाते हैं…..या कि हम भी औरों कि तरह अपनी गलतिओं को भी दुसरे के मत्थे मढ़ कर पल्ला झाड़ लेते हैं…जब अपना स्वार्थ एक परिवार…एक समाज…देश से ऊपर होने लगता है तो मनभेद शुरू होते हैं…जो झगडे का कारण बनते हैं…मधुकर जी ने बहुत सही कहा है….नेता इसी समाज से ही तो जाते हैं…हमने अपने को ही तो वहां बैठा रखा है….
सियासत को जन्म हमर सोच ने दिया है अच्छी जॉब, अच्छा स्कूल, अच्छा काम जो हम ऐसे नितओ से करवाते है फिर वो सियासत का खेल खेलते है जिसकी जीत वो खुश जिसकी हार वो नाखुश
धन्यवाद-
जिम्मेदारियां बहुत हैं निभाइए जनाब
खुशियों के सफर भी बहुत दीखते जनाब ।
जिसने उजाड़ी वस्ती मंजर संवार लिया
वक्त ने वहीं उसी के घर खंजर उगा दिया ॥
आज के परिपेक्ष्य में तो अधिकता लोग यही कर रहे है. लेकिन राजनेता हमें वैसे ही मिलते है जैसा समाज है
सियासत लड़ाती है…सही है…पर क्या इसके ज़िम्मेदार हम नहीं हैं कहीं भी….हम जानते हैं तो बार बार हम धोखा क्यूँ खाते हैं…..या कि हम भी औरों कि तरह अपनी गलतिओं को भी दुसरे के मत्थे मढ़ कर पल्ला झाड़ लेते हैं…जब अपना स्वार्थ एक परिवार…एक समाज…देश से ऊपर होने लगता है तो मनभेद शुरू होते हैं…जो झगडे का कारण बनते हैं…मधुकर जी ने बहुत सही कहा है….नेता इसी समाज से ही तो जाते हैं…हमने अपने को ही तो वहां बैठा रखा है….
सियासत को जन्म हमर सोच ने दिया है अच्छी जॉब, अच्छा स्कूल, अच्छा काम जो हम ऐसे नितओ से करवाते है फिर वो सियासत का खेल खेलते है जिसकी जीत वो खुश जिसकी हार वो नाखुश
धन्यवाद-
जिम्मेदारियां बहुत हैं निभाइए जनाब
खुशियों के सफर भी बहुत दीखते जनाब ।
जिसने उजाड़ी वस्ती मंजर संवार लिया
वक्त ने वहीं उसी के घर खंजर उगा दिया ॥