आरक्षण ने तंज कसा है
प्रतिभाओं के पंख कुतर कर,
रोजी रोटी मिलना था पर
हाथ धरे बैठे है घर पर,
अन्य सदन पैदा जो होता
कम से कम आरक्षण मिलता|
पढ़ा-लिखा सब गया अकारथ
तंत्र-मंत्र सब भूल गए ,
दिन भर खटटा है बैलों-सा
हाथ पैर सब सूज गए ,
काश! अगर ये हाथ न होता
कम से कम आरक्षण मिलता|
बदतर हुआ घर का जो चलना
शहर गया फिर घर को आया,
जिस पद का हक़दार था वो
आरक्षण वाला ऐंठ ले गया,
काश! अगर वो अँधा होता
कम से कम आरक्षण मिलता|
कटा हाथ है पैर भी कट गया
आँखें फूटी कान भी फट गया,
जाति-धर्म और नाम बदल लिया
घर-परिवार इतिहास बदल दिया,
खून जम गया साँसे थम गई
उसका जीवन शुन्य हो गया,
काश! अगर ऐसा भी होता
मृत्यु में भी आरक्षण मिलता|
भारतीय समाज में फैली इस कुरीति का तो भगवान भी कुछ नहीं कर सकते
आरक्षण अपना वास्तविक रूप त्याग कर आज आवष्यकता से अधिक राजनितिक मुद्दा बन गया जिसका ……इसके लिए समाज जिम्मेदार है !
आरक्षण आज राजनीति का अखाडा बन रहा है….वास्तव में आरक्षण कमजोर तबकों का उचित प्रतिनिधित्व के लिए बना है पर हम इसे गरीबी हटाओ अभियान का हिस्सा मान लेते है। आबादी के हिसाब से सबका समुचित प्रतिनिद्धित्व हो, यह सामाजिक समरसता के लिए भी आवश्यक है…..
आरक्षण का कलंक मिटाने के लिए सभी को आवाज़ उठानी होगी