अमीर और गरीब
अमीर और गरीब में
बस फ र्क है इतना ।
अमीर चैन की नींद सोता है
गरीब रात भर जागकर
पहरा अमीरों का देता है।
सुविधा के इस दौर में तो
हर सुविधा अमीर के पास होती है ।
सोने के लिए उसके नीचे
मुलायम गद्दे होते हैं ।
रहने के लिए पूरा महल
खाने के लिए बहुत सा माल
सर्दी हो या हो गर्मी
लेते हैं मजा पूरा साल ।
अमीर और गरीब में
बस फ र्क है इतना ।
गरीब तो गरीब है
उसका क्या होगा हाल
मँहगाई की वजह से तो
गरीब का जीना हुआ बेहाल
खाने पीने की तो पूछो मत
जब धरती ही उसका बिस्तर है होता
अमीर पथ पर अग्रसर है
गरीब और गरीब हो चला
अमीर और गरीब में
बस फ र्क है इतना ।
यदि किसी अमीर की
चीर जाये कभी जो ऊंगली
कर देते जमीन आसमान एक
मगर गरीब का तन तो
क्षत-विक्षत होने पर भी
उतना ही काम करता है
अमीर के लिए आँसू बहाते हैं सभी
कोई गरीब की तरफ नही देखता
अमीर और गरीब में
बस फ र्क है इतना ।
माफ किजिये सिर्फ अमीर होने से सब कुछ हासिल नही होता
पैसे सिर्फ सुविधाये देती है सुकून नही
मैने अमीरो को भी फुट फुट कर रोते देखा है ।
दुसरे की चौखट मे भिखारी की तरह गिड़गिड़ाते देखा है ।
शायद काजल जी, रचना का भाव कुछ और परिपेक्ष में है, आप खुद देखिये, किसी के पास इतना पैसा की गिनती नहीं कर पाता और कोई पाई पाई के लिए मोहताज…रचना शायद इस भेद को दिखाना चाहती है,