देखो किसी को किसी की खबर नहीं |
डूबे सभी खुद की जिंदगानी में ||
कैद हो बंद दीवारों में बैठे |
खोये हैं लोग अपनी कहानी में ||
ना माँ के कलेजे से ही लिपटना |
कौन सुने अब्बा की बात सयानी ||
गलियां सुनी पड़ी हैं जाने कब से |
बच्चें करते नहीं वहां शैतानी ||
जादुई कागज़ की तलाश सभी को |
कैसे देखो भूलें खाना पीना ||
बातें करें लोग जाने कितनों से |
औरों को सुन भूलें ख़ुद का जीना ||
ना स्वेटर बुने सिलाइया किसी की |
न दूध से मक्खन मथानी निकाले ||
बरगद की छाया में बैठे बुजुर्ग |
गांव की बातें आपस में सुना दे ||
कागज़ की किश्ती, बारिश की मस्ती |
वो मिट्टी के खिलौनों से खेलना |
तेल के दीप जलाना शाम होते ||
अंगीठी पर चपाती को सेंकना ||
हल चलाना वो भरी धुप खेतों में |
पत्नी का धुप में रोटी ले आना ||
पल्लू से पति का पसीना पोंछना |
प्याज़, छाछ से मिलकर रोटी खाना |
पहले हर घर कच्चा मन सच्चा था |
अब सबके मन झूठे हैं घर पक्के |
मतलब पर आज टिके सारे नाते |
पैसे आगे झूठे भी हैं सच्चे ||
“मनी” गुज़ारिश है तुझसे बस एक ही |
रिश्तों को मिलकर प्यार से निभा ले ||
अपनी विरासत को आज कैसे भी |
कोशिश कर बच्चों के लिये बचा ले ||
अति सूंदर. जादुई कागज़ों की तलाश वाह क्या प्रयोग है
धन्यवाद शिशिर जी बस इस तरह मेरा मार्गदर्शन करते रहे |
मनिंदर जी, आज की भागम भाग जीवन में इन्सान इतना एकाकी हो गया है की क्या कहने, आपने अच्छा लिखा है….
धन्यवाद सुरेन्द्र नाथ जी आपका बहुत बहुत
अत्ति सुन्दर…..