पिताजी कार्यरत वायुसेना में
परिवार दिल्ली मे रहता था
जन्म लिया था पालम मे
हरकोई, मन्नू मन्नू कहता था
कोई घुमाता साईकिल पर
तो कोई खूब खिलाता था
उनसे भी प्यार था मिलता
जिनसे न कोई नाता था
गोलू मोलू सा दिखने मे
और मोटी मोटी आँखें थी
खट्टी मीठी और पूरी तोतली
छोटी छोटी बातें थी
मोर बगीचे मे आते थे तो
उन्हें डंडे मार् भगाता था
हस्प्ताल मे बदल गया कह
अपनों को रोज सताता था
भैया दीदी प्यार थे करते
पर उठा नहीं वो पाते थे
गोद मे लेने के चक्कर मे
अनगिनत बार गिराते थे
सिलसिला प्रेम का अविरल रहा
जबकि रोज डांट वो खाते थे
बसंत बीता और पतझड़ आया
और तकदीर को कुछ और ही भाया
वो सच ही हो गया जो
खेल था एक दिन
अब कोई पूरब है और
कोई है दखिन
मिलो दूर वो चला गया
यादो की धरोहर साथ मे लेकर
बचपन की प्रतिध्वनि, मन्नू -मन्नू
प्रति क्षण के जज्बात मे लेकर
स्वयं से होते निरन्तर उसके
बिन शीश के सम्बाद मे लेकर
स्मरण के सारे पुष्प समेटे
आलिंगन और पडिपात से लेकर
Bahut khoob sundar bachpan ki natkhat pyari bhari yaadon ka chitran….
dhanyabad sriman
शब्दों के माध्यम से उस पल का सजीव चित्रण…..
dhanyabad sriman