श्री हरिवंश राय बच्चन जी को मेरी और से एक छोटी सी श्रद्दांजलि , उनकी मधुशाला को थोड़ा आगे बढ़ाने का एक छोटा सा प्रयास, इक्कीसवी सदी की मधुशाला के रूप में .
जिस पर मैं अभी कार्य क्र रहा हूँ.
इक्कीसवीं सदी की मधुशाला के कुछ अंश प्रस्तुत है,
पैमानों में भरी रहती थी
मयखानों की जो हाला
भर भर के मदिरा से जो
छलका करता था प्याला
मदिरालयों का वो रुतबा
जाने कहाँ पर खो गया
ढूंढ रहा हूँ मैं इस जग में
बच्चन जी की मधुशाला !!#!!
हिन्दू हूँ या मुस्लिम मैं
क्या फर्क है पड़ने वाला
एक जात मेरी केवल
मैं हूँ केवल पीनेवाला
मेरे धर्म का कोई रंग नहीं
ना निशान ना अल्लाहताला
हम सब खुद है पीने वाले
और मज़हब मधुशाला !!#!!
तेरे मस्जिद मंदिरों में
सिर्फ खुदा का बोलबाला
धर्म-कर्म दी बातों में
जकड़ा हुआ है दीन वाला
आओ मेरे मदिरालय में
इक अलग मज़हब दिखता हूँ
स्वतंत्र यहां पर पीने वाले
स्वतंत्र मेरी मधुशाला !!#!!
तुषार गौतम (Tushar gautam)
सम्पर्क +91 8827795526
email [email protected]
बहुत ही खुबसूरत रचना है तुसार गौतम जी….मेरे पास भाव नहीं व्यक्त करने का…
आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया देख कर बहुत ख़ुशी हुई
बड़ा अच्छा प्रयास है आपका तुषार जी
बहुत बहुत धन्यवाद आभा जी
खूबसूरत प्रयास ……बहुत खूब ।।
बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत खूब तुषार जी आप से भी सिखने को बहुत कुछ मिलेगा |
धन्यवाद
हिंदी साहित्य से जुड़ना मेरा सौभाग्य है