प्रेमी –
तन्हाईयो के आगोश मे हमे
तुम अपना बना कर चले गये ,
तुम्हारा रुख इन हवाओ कि तरह था,
न जाने कितने जसबात , बहा कर चले गए,
हम तुम्हे खत लिख लिख कर पुछते रहे,
कि क्या राज था वो ,जो दिल मे छुपा कर चले गये ।
दुर ही जाना था, तो पास क्यु आये,
जिदंगी मे इक अगन मोहब्बत की लगा कर चले गये ।।
प्रेमिका –
मै कोई हवा नही जो रुक जाऊ,
मै कोई वक़्त नही जो थम जाऊ,
अजीब कशमोकश मे है मेरी जिंदगी
गर न पा सकी तुम्हे तो शायद टुट कर बिखर जाऊ ।
तुम तो जसबात ए बया खतो से करके चले गए,
हम तुम्हारी यादो मे जलते रहे,
वफाओ के आलम मे,
और तुम हमे बेवफा बता कर चले गये ।।
काजल सोनी
very nice and readable…………
बहुत बहुत धन्यवाद आपका मधुकर जी ।
काजल जी, आपने लिखा है मै हवा नहीं जो रूक जाऊ, पर हवा तो रुकती नहीं, ठीक इसी तरह वक्त तो थमता ही नहीं, फिर कबीरदास जैसी इस उलटबासी का अभिप्राय मेरे गले नहीं उतर रहा।। याँ तो मै कुछ समझ नहीं रहा, और सभी पंक्तियाँ स्वागतयोग्य है।।।।
सुरेंद्र जी प्यार मे अक्सर ये होता है हवा रुक जाती है और वक्त थम सा जाता है ।
अगर ऐसा है मैडम तों फिर रचना की रवानगी देखिये, यहाँ अर्थ यह हुवा की प्यार ही नहीं है….अन्यथा लबों पर यह लब्ज क्यों….गहराई से सोचियेगा…..मै भी गलत हो सकता हूँ …….
माफी चाहती हुए सुरेंद्र जी,
रचना के बारे मे मै अबोध हु ।आप ने अच्छा सुझाव दिया । सिर्फ कल्पना से प्रेम जताना सत्य न होगा
अति सुन्दर भावनात्मक रचना …..मुझे लगता है काजल जी का अभिप्राय यहां इस बात से है …..जब जिंदगी में कुछ पल ऐसे आते है जंहा सब कुछ ठहर सा जाता है । अक्सर प्रेम में मिलन और जुदाई में ऐसा प्रतीत होता है ….अगर ऐसा है तो वो अपनी बात को समझाने में असफल रही है ।
सुरेंद्र की टिप्पणी और काजल की रचना दोनों अपनी जगह उचित है
, और प्रशंशनीय है !!
बहुत बहुत आभार आपका निवातिया जी ।