देश के ताजा महौल पर मेरी पंक्तियाँ —
घोटालो के घाव हद से भी आर-पार हुए
फ़िर भी दलालों के ना पीर हुई पेट में
और आस्था के अर्थ पे तो हो रहा कुतर्क
अटका है न्याय भ्रष्ट अदालत के डेट में
धूल फांक रहे हैं नहर नाले जलाशय
और कसाई लगे माँ धेनु की आखेट में
केरल की निर्भया भी ना दिखती किसीको
ख़बरंडियां लगीं हैं डिग्री-डिबेट में
कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
9675426080
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देवेन्द्र आपकी रचनाओं में निश्चित ही आग होती है लेकिन मेरा सुझाव है की व्यंग इशारों में हो तो और अधिक प्रभाव छोड़ेगा और नकारात्मकता भी नहीं आएगी. आपने सदा गम्भीर मुद्दों पर बात कही है और मैं आपकी रचनाए अक्सर पढता हूँ
आपने सही कहा आज जो देश के हालत बने हुए है
मणि जी
शिशिर जी आभार
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शिशिर जी कोशिश तो यही रहती है पर इशारों में व्यंग्य करने में नाकाम रहता हूँ
और मुझे अच्छा भी लगता है सीधा कटाक्ष करना
फ़िर नकारात्मकता तो उन्हें ही लगेगी जिन पर मैं कटाक्ष करता हूँ
और इसीलिए गुरु जी ने मुझे ये नाम दिया -आग
आप हौसलों का घी डालते रहिये ये आग यूँ ही जलती रहेगी
देवेन्द्र जी आप के जजबातो में जबदस्त आग है …..इसमें कोई शक नहीं की सबका अपना अपना मत एव अंदाज होता है ……..बेबाकी से अपने विचार प्रस्तुत करना अपने आप में एक कुशलता है, …बशर्ते निष्पक्षता का भाव बरकरार रहे !!
लिखते रहिये मगर …आग उगलते रहिये ….. निष्पक्षता के साथ !!
आभार निवातिया जी
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देवेन्द्र जी कवि का कलात्मता यही है कि वह कभी एक पक्षीय न दिखे, अपनी बात को बेबाकी से कहना चातुर्य है पर निश्पक्षता भी अत्यन्त जरूरी है। हम सभी के सीने मे जो जस्बात उभरते है हम उसी को कलमबद्ध करते है, आप की रचनाय़ें अच्छी है पर उसमे निश्पक्षता का अभाव और किसी पूर्वाग्रह की ओर इंगित करता है। आप जिसपर चोट करना चाहते है, उस पर थोड़ी रचना की कलात्मता से प्रहार करिये…….. चाह कर भी हम पुरे नम्बर नही दे पाते और एक टिस रह जाती है……