आज़ादी की दास्ताँ…….
क्या यही सोचकर वीरो तुमने
हिँद वतन आज़ाद किया
कि अपने ही लूटेँ हिँद धरा को
अपने ही लूटेँ हिँद वतन
अपनोँ के ही कदमोँ तले
ये मसले जाएँ ध्वज सुमन
क्या यही……
खाईँ गोलियाँ अंग्रेजोँ की
असंख्य अत्याचार किए सहन
अपनोँ की लगाई आग मेँ ही
आज जल रहा है हिँद चमन
क्या यही…….
आधा पेट ही भोजन खाया
न्योँछावर किया अपना तन मन
ताकि जनता रहे स्वस्थ
आबाद रहे हर घर आंगन
क्या यही सोचकर वीरो तुमने
हिँद वतन आबाद किया
कि अपने…….
आधी जनता रहे त्रस्त
आधी पाए आराम प्रबंध
आधी जनता रहे अशिक्षित
आधी पाए ज्ञान तपन
सत्ता मेँ जो बैठे हैँ
वही लूट रहे अपना चमन
क्या यही सोचकर वीरो तुमने
अपना सर्वस्व बलिदान किया
कि अपने ही लूटेँ हिँद धरा को
अपने ही लूटेँ हिँद वतन
अपनोँ के ही कदमोँ तले
ये मसले जाएँ ध्वज सुमन
क्या यही…………………
बात तो सच्ची लिखी है आपने और प्रश्न भी वाजिब पूछे है आपने….
dhanyawad sir apka is rachna ko pasand karne k liye
बहुत सुन्दर….क्या बात है….
बहुत बढ़िया युगल जी
अति सुंदर और प्रभावशाली रचना