गुलमोहर
गुलमोहर तुम्हारे सुर्ख ,सुनहरे ,
सुंदर, सजीले ,अशर्फी से फूल !!
इन्हे देख भीषण गर्मी में ,
राह की थकन , गए राही भूल !
छतनार से पत्ते छितराए,
जेठ की दुपहरिया में खड़े हो इतराए !
ग्रीष्म जब दिखलाता तेवर ,
तुम बन जाते धरा के जेवर !
ज्यों ज्यों गर्मी का पारा चढ़ता ,
त्यों त्यों फूलों से वृक्ष लदता !
सहनशील ,बहादुर से बांके ,
समूची सृष्टि तुम्हें ही ताके !
पानी भरने जाती ललनाएँ ,
शीतल छाँह में नयी जान सी पाएँ !
गुलमोहर तुम्हारे सुर्ख ,सुनहरे ,
सुंदर ,सजीले ,अशर्फी से फूल !!
दीपिका शर्मा
बहुत बढ़िया डॉ दीपिका शर्मा जी
दीपिका जी प्रकृति पर बहुत खूबसूरत रचना.
दीपिका जी प्राकृतिक सौंदर्य कि खूब छटा बिखेरी है आपने …..रचना का शब्द संयोजन बहुत अच्छा है जो आपके हिंदी एवं साहित्य प्रेम को बखूबी दर्शाता है ।
दीपिका जी…आप का प्रकीर्ति की सुंदरता को गुलमोहर के रूप में निखारने का अंदाज़ बहुत ही उत्तम…अत्यन्त मनमोहक रचना…
प्रकृति की सुन्दरता को गुलमोहर के जरिये दर्शाने का अनोखा अंदाज….बहुत खूब…