नारी के अनेक रूप
दुर्गा-काली की रूप हैं नारी
हर रूप मे लगती है न्यारी
कभी माँ,कभी बहन
कभी बेटी तो कभी बहु बन जाती
हर रूप में वो ,अपना फ़र्ज़ निभाती
माँ बनकर लोरी सुनाती
बहन बनकर हक़ जताती
बेटी बनकर फर्ज़ निभाती
पत्नी बनकर प्यार जताती
पृथ्वी से भी ज्यदा
सहने की है शक्ति
सारा दिन काम करती
फिर भी नही वो थकती
खुद सारे दुःख सहकर
रखती है हमें वो खुश
फिर भी होता है उनका अपमान
यह है बहुत बड़ा दुःख
भारत जैसे देशों में
पूज्नीय है नारी
फिर भी हो रही प्रताड़ित
देख रही दुनिया सारी
हर पुरुष के जीवन में
नारी का साथ होता है
जो नहीं करता उनकी इज़्ज़त
वो जीवन भर रोता है
हर दुःख सहती है नारी
फिर भी रहती है चुप
माँ,बहन,बेटी है…
नारी के अनेको रूप
पियुष राज,राजकीय पॉलिटेक्निक,दुधानी, दुमका।
पियूष राज जी, नारी तो सदैव से ही सम्मानित रही है।। उसके गुणो को अपनी रचना में स्थान देने के लिए मेरी आपको शुभकामना
मैं एक लड़की और कवियत्री होने के कारण, आपके दोनों ही किरदार को सलाम करती हुँ,
पुरुष प्रधान विचार धारा वाले देश में रहकर भी आपके आचार और विचार दोनों ही सराहनीय है|