बच्चे के चौथे जन्म दिवस पर
उसके शिक्षा का ख्याल आया।
सोचा विचारा फिर
मुझे अपने बचपन का
प्राथमिक स्कूल याद आया।
बच्चे को लेकर पहुच गया
पास के सरकारी स्कूल में।
चारो तरफ कोलाहल था
बच्चे खेल रहे थे धुल में।
वहाँ उपस्थित बच्चो की गरीबी
उनके कपड़ो से झांक रही थी।
शिक्षा शायद उनका भविष्य बदले
आँखे तो अपलक ताक रही थी।
कुछ समय यूँही उनके बीच अपना
बचपन खोजते बीता
बाद में एक अध्यापक आये
मुझे देख मुस्कराए, हाथ मिलाये।
धुल उड़ती ऑफिस में,
लकड़ी की हिलती कुर्सी पर मुझे बिठाये।
मेरे आने का वजह जान
कुछ व्यग्र, कुछ परेशान।
ले गहरी सास, इधर उधर देख,
फिर बोले भावुक अतिरेक
आप अच्छे घर के मालूम होते है
फिर क्यों अनजान बनते है।
यह सरकारी स्कूल है।
कहने के लिए यह सार्वजनिक संपत्ति
पर यहाँ केवल पढ़ते गरीब।
जिनके पास दो जून की रोटी
बमुश्किल होती नसीब।
जिसके पास थोड़ा भी कुछ है,
उसका बच्चा यहाँ नहीं आता।
सरकारी स्कूल आने मात्र से
अमीरों का स्टेटस चला जाता।
मैंने वजह पूछा तो बोले-
इन गंदे फटे हाल नौनिहालों को
जरा गौर से देखिये जनाब।
झुग्गी झोपड़ियो में रहने वाले
बच्चो से अमीरों को आती गंध ख़राब।
महलों में रहने वाले बच्चे,
इनके साथ कैसे सामंजस्य बिठाएंगे।
दिन भर में, कई कपडे बदलने वाले,
क्या मलिन बीच बैठ पाएंगे।।
वैसे तो यहाँ का अध्यापक ज्ञानी है।
पर उसकी कुछ और ही परेशानी है।
एक-दो अध्यापक के भरोसे
पूरा स्कूल चलता है।
उपर से सरकारी कामों में उसकी
ड्यूटी लगता है।
कोई भी सरकारी योजना हो
मतगणना हो, जनगणना हो,
या राशन कार्ड बनना हो।
बस प्राथमिक स्कूल का
अध्यापक नजर आता है।
गैर शैक्षणिक कार्य करने में
स्कूल में बंद हो जाता है।।
स्कूल चले या न चले, हममें से
किसी को गम नहीं।
सरकारी नौकरी पाया अध्यापक भी
आज अफसर से कम नहीं।
यह नौबत न आती, अगर यहाँ पढता
किसी अफसर या नेता का बेटा
सारा सिस्टम सुधर जाता और
स्कूल समय से चलता।
मेरी सलाह माने, न आये किसी भूल में
दाखिला दिलाये अपने बच्चे को
किसी अच्छे स्कूल में
जहाँ साल भर भरपूर पढाई हो
अवरोध न आये विप्पत्तियो का
व्यक्तित्व निखरे उसका और करे सामना
भविष्य की चुनौतिओं का।।।
सरकारीसरकारी स्कूल की दुर्दशा देख
दिल में उठा भयंकर शूल
भारी मन से, हारे भाव से हम
जा पहुचे एक प्राइवेट स्कूल।
वहाँ बहुत बड़े गेट पर
दो द्वारपाल मुस्तैद खड़े थे
कई कारों के काफिले भी
अगल बगल पड़े थे।
गेट के अन्दर जैसे घुसा
रिसेप्सनिष्ट ने आने का कारण पूछा।
बड़े आतिथ्य भाव से एक कमरे में बैठाया।
कुछ सोचते तब तक, गर्मागर्म काफी थमाया।
यहाँ सभी खुस ल रहे थे
लाली चमक रहीं थी गालों पर
मेरी निगाहें दौड़ रही थी
कमरे की रंगी पुती दिवालों पर।
लिखी गयी थी जिनपर महापुरुषों की सूक्तियां
और टंगे थे छोटे बच्चों के हाथों की
कुछ नायाब कालाकृतियाँ।
थोड़ी देर में हमारा नंबर आया
पेओन ने हमे प्रिंसिपल के कमरे तक पहुचाया।
प्रिंसिपल के ऑफिस का क्या कहना
यहाँ हर तरफ भव्य सजावट थी
चेहरा उनका मुस्कुराता हुवा
पर, हाँ मुस्कुराहट में मिलावट थी।
प्रिंसिपल का अभिवादन कर
मै व्हील चेयर पर बैठ गया
एडमिशन की बात बताई
मैडम ने बच्चे से हाय हलों किया।
पास में पड़ी चाकलेट उसको देकर
कहने लगी हो अति गंभीर,
बच्चे कल के भविष्य है
अच्छी शिक्षा बनाती इनकी तक़दीर।
बच्चा खड़ा हो सके अपने पैरों पर
ऐसी कोशिश हम करते है
सिखाकर संस्कार और अनुशासन
बच्चे का सर्वांगीण विकास करते है।
कक्षाएं कंप्यूटर और स्मार्ट क्लास युक्त
यहाँ नई तकनीक से पढाई होती है
लाइट पंखा की समुचित प्रबंध
जनरेटर से बिजली सप्लाई होती है।
इनडोर आउटडोर दोनों तरह की गेम
की भरपूर व्यवस्था है
इन सभी सहूलियत के मुकाबले
फ़ीस बहुत ही सस्ता है।
बस की सेवा उपलब्ध हमारी
आप के बच्चे को लायेंगे ले जायेंगे
हमारे बीच संवाद बना रहे इसलिए
आपको पेरेंट्स टीचर मीटिंग में बुलाएँगे।
बस कुछ बातों को रखना होंगा ध्यान
बच्चा निर्धारित ड्रेस में आये वर्ना
नाहक होगा परेशान।
आपको किताबे, ड्रेस लगायत
सब कुछ स्कूल से खरीदना होंगा
ख्याल आया पूछ लू की बच्चा मेरा रहेगा
या उसे भी यही से लेना होंगा।
मैडम का कटा बाल देख कर
संस्कार भी समझ रहा था
बुकलेट और मोटी फ़ीस देखकर
माथा खनक रहा था।
अभी तक तो यही सुना था
शिक्षा पर सबका सामान हक है
पर आज पता चला
आमिर गरीब की शिक्षा में बड़ा फर्क है।
मंत्री सरकारी स्कूल में दी जा रही सुविधा
का गुण गाता है।
पूछता हूँ मै, फिर क्यों नहीं वह अपने बच्चे
को सरकारी स्कूल में पढ़ाता है।
इतनी विषमता है , कमसे कम अब ढोंग
करना बंद करो।
सरकारी स्कूल भी नियमित चले
ऐसी व्यवस्था चाक चौबंद करों।
✍सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”✍
सुधि जनों यह रचना थोड़ी बड़ी है, आप इसे एक बार पूरा जरूर पढ़े और समाज के शिक्षा की असमानता, सरकारी और प्राइवेट स्कूल की भिन्नता को मेरी लेखनी से देखने की कृपा करे।।।
पहले मुझे इस रचना को दो खंडों में पब्लिश करने का विचार था, पर रचना लिखने का मूल उद्देश्य कही छुट जा रहा था, अतः एक ही भाग में पूरी बात को समेट कर आपके समक्ष रख रहा हूँ।। आप अपना सुझाव और प्यार देंगे।। आपके सुझाव मेरा मौलिक मार्गदर्शन करेगा।।।
वाह क्या बात है…बहुत ही तीखा कटाक्ष आप का…अप्रतिम…बहुत बहुत बधाई आप को ऐसी रचना लिखने की…लाजवाब…
निरंतर मेरी रचना का अवलोकन करते रहने और उसपर अपनी विशाल ह्रदय से बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने हेतु मै अत्यंत आभारी हूँ।।
भारतीय शिक्षा प्रणाली में विषमताओं को उजागर कर तुलनात्मक अवलोकन करने का खूबसूरत कार्य किया है आपने………अति सुन्दर !!
निवातियाँ डी के जी कोटि कोटि आभार
सच है कवि किस हद तक कलम से जीवन बदले , यहाँ हर कदम पर लोग चहेरा बदल लेते है
जो कटु सत्य आपने अपने कविता में बयान किया है , काश वो हर किसी के दिल तक घर कर जाये
गायत्री द्विवेदी मैडम आपकी इस खुबसूरत प्रतिकियाँ के लिए सत सत नमन।।।।
अति सुंदर रचना…………….
मनोज भाई आपको कोटि कोटि नमन मेरी रचना को पढने और अपने विचार रखने हेतु…
सुरेंद्र सत्यपरक रचना. पूर्व में प्रकाशित मेरी एल रचना ” हमको देश बनाना है” भी पढ़े और अपनी प्रतिक्रिया अवश्य भेंजे.
सरकारी और प्राइवेट स्कूलों की अपनी अपनी दुर्दशा है, कहीं पढ़ाई की तो कहीं महंगी शिक्षा की ………………….. दोनों का तुलनात्मक व्यख्यान ————– बहुत अच्छे सुरेन्द्र जी !!