अये वक़्त ! इक अर्ज़ी है तुझसे
कभी तो बता दे अपनी मर्ज़ी मुझसे …..!!!!
तू कब खुशियों की बरसात देने वाला है
और कब गम में तू मुझे डुबाने वाला है !!!!!
तू कब मेरी कश्ती को किनारा देने वाला है ‘
और तू कब मेरी कश्ती डुबाने वाला है..!!!!
अये वक़्त ! इक अर्ज़ी है तुझसे
कभी तो बता दे अपनी मर्ज़ी मुझसे …..!!!!
वक्त को समझना बहुत मुश्किल है पर जिज्ञासा का होना बुरा नहीं
हर कोई जानना चाहता है कि क्या होने वाला है…इंसानी फितरत है…पता चल भी जाए तो भी वो करेगा वही जो करना चाहता है….देखा जायेगा जो होगा कहके…आप ने बाखूबी जज़्बातों को अंजाम दिया है….बहुत सुन्दर…. ‘राना साहरी’ साहिब का लिखा एक शेर याद आ गया….बेशक मेरे नसीब पे रख अपना इख्तेयार….लेकिन मेरे नसीब में क्या है बता तो दे…..
बहुत खुबसूरत रचना।।।। आपने ऐसे विषय को चुन है जो हम सभी से वास्ता रखता है पर उसकी भनक हमे कुछ हो जाने के बाद मिलती है
बहुत ही सुंदर रचना
thanku so much