मेरे घर के पिछवाड़े में आयी एक प्यारी सी मांनो बिल्ली…
सुन्दर प्यारे बच्चे ३ वो साथ थी लाई…
म्याऊं म्याऊं जब किया बच्चों ने…दूध कटोरी मैंने रख दी..
अब तो रोज़ सुबह और शाम…दूध पीते…मस्ती करते..इधर उधर थे घुमते…
कुछ दिन में ही दोस्त बन गए…
पर माँ उनकी थी चौकन्नी…गुर्राती…जब किसी को था मैं पकड़ता…
धीरे धीरे गुर्राना कुछ कम हुआ पर कभी भी वो मेरे पास ना आई….
एक शाम जब घर आया तो उसकी रोती सी आवाज़ आयी……
बाहर निकला देखा बच्चे उसके २ थे साथ…शायद एक था गायब…..
मैंने इशारों में पुछा…और लगा बच्चे को ढूंढने…
वो भी जैसे समझ गयी…जहाँ जहाँ मैं जाता वह भी साथ ही जाती…
फिर एक जगह जा कर बार बार वो रोने लगी……
देखा जा कर उस साइड पे बच्चा उसका था मरा पड़ा….
गर्दन उसकी कटी हुई थी…शायद कोई बिल्ला उसको था खा गया…
उसको उठाया…कपडे में लपेट दफनाने बाहर ले गया…
इस अंतिम यात्रा में उसकी माँ भी मेरे साथ ही थी…
फिर घर आ कर मैंने दूसरे बच्चों को कटोरी में दूध डाला ही था…
उनकी माँ भी आ गयी…
पहली बार वो मेरे पास आ कर बैठी…
मैंने धीरे से उसकी पीठ पे हाथ फेरा…वह कुछ नहीं बोली…
हाँ पूँछ हिलाती रही…
पता नहीं कौन किस को दिलासा दे रहा था…
बहुत महीनों बाद फिर एक मांनो बिल्ली…
साथ में उसके २ बच्चे…म्याऊँ म्याऊं करते…
मेरे कमरे के बाहर प्यारी सी आवाज़ लगाई…
मैं बाहर निकला दूध की कटोरी में दूध डाला…
बच्चों की पीठ पे प्यार से हाथ फेरने लगा…
माँ उनकी ना गुर्राई…मैं सोच में पड गया…
यह वो वाली तो बिल्ली नहीं है…वह भूरी थी यह सफ़ेद और काली…
फिर मन में आया यह शायद उसकी बच्ची है…जो मेरे हाथ से दूध पीती थी…
आज माँ बनी तो बच्चों को जैसे मिलाने लाई है…
बच्चों को मेरे साथ खेलता देख वो कहीं निकल गयी…
उसको जैसे भरोसा था मुझपर…
और मैं सोच में पड गया…
काश! हम इंसान भी ऐसे ही भरोसा कर सकते तो…
रिश्ते पीढ़ी दर पीढ़ी प्यार से निभते…
काश….ऐसा भरोसा कर सकते…
\
/सी.एम. शर्मा (बब्बू)
Nice thoughts……………..
बहुत बहुत शुक्रिया…मधुकरजी…
क्या मस्त लिखा भाई आपने, भावविभोर कर दिया आपने…… शब्द नही मेरे पास….
सुरेन्द्र नाथ सिंह जी….एक-आध और घटना भी इस से जुडी हुए है मेरे साथ…कल जब मैं लिख रहा था समझ नहीं आया उसको यहाँ कैसे ब्यान करूँ…फिर कभी अपनी उस घटना को शेयर करूंगा….आप की दिल से निकली प्रतिकिर्या का तहेदिल से आभार….
बहुत ही सूंदर भावों से सुसज्जित रचना.
तहदिल आभार आपका….विजयजी…