मैं हिंदी अपने ही घर बेगानो सी रहने लगी हूँ,
अपनों की शर्मिंदगी का कारण बनने लगी हूँ |
खुद में शब्दों का समुद्र समाये हुए हूँ ,
न जाने कितने ग्रंथो का ज्ञान छुपाए हुए हूँ |
हिंदी वर्णमाला में हर भाषा का शब्द समाया है ,
कोई अंग्रेज रण , ओड़ीसा सही नहीं बोल पाया है |
मेरे अपने ही दूसरी भाषा का ज्ञान करने लगे है ,
उसे ही अपना और देश का अभिमान कहने लगे है |
दुहाई देकर की हम अन्तर्रास्तीय स्तर पर पहचान बनाने लगे है,
भूल गए है इस नाम पर हम अपना वजूद मिटाने लगे है |
शीर्षथ श्रेणी की साक्षरता दर रखने वाले देशो ने अपनाया है,
अपनी मातृभाषा में ज्ञान अर्जन आवशयक कराया है |
क्लिट्सठ हिंदी के शब्दों को तो लोग हास्य रस समझने लगे है,
माता-पिता , भ्राता-प्रणाम जैसे शब्दों को सुनकर जोर-जोर से हसने लगे है |
आने वाली पीढ़ी हिंदी को hindi से ही पहचान पाऐगी,
उनके लिए हिंदी ग्रंथो को भारत सरकार अंग्रेजी में छपवाएगी |
जब भारत अंग्रेजी शासनकाल आया था ,
तब अंग्रेजी ने रोजगार में तेजी से परचम फहराया था|
आज लौटकर भारत में भारतीयों ने वो कहर मचाया है,
अंग्रेजी कहने वाले को ही महान ज्ञानी बतलाया है|
वो दिन दूर नहीं जब संस्कृत की तरह हिंदी भी हमसे अलविदा कह जाएगी,
कुछ दिन तक कूड़े-कूचों में सड़ेगी फिर पूरी तरह मिटटी में दफ़न हो जाएगी|
अन्तर्रास्तीय भाषा तो सिर्फ अंग्रेजी है , फिर क्यों और भाषाओ में इतनी तेजी है,
फ़्रांसिसी , यूनानी , चीनी और अफगानी इन सबकी भी है अपनी-अपनी वाणी|
गलती मेरी की मैं इस देश की भाषा हुँ, मैंने ही वो लाल नहीं जन्मे जो कहे ,
माँ मैं तुझे देश विदेश घुमाकर लाता हूँ|
मैं धीर हूँ,गम्भीर हूँ,यहाँ रची हूँ , यही बसी हूँ,
मैं मिस्ठ हूँ, शिष्ठ हूँ, औरो से विशिष्ठ हूँ,
देश की महिमा मुझमे है,और देश की गरिमा मैं हूँ,
जय हिन्द , जय हिंदी
बहुत ही उत्तम…हिंदी की दुर्दशा के लिए हम खुद भी उत्तरदायी हैं….समय के साथ अपने सरल शब्दों का प्रयोग नहीं किया…दूसरा यह भी के हम इंग्लिश का कोई शब्द समझ नहीं आता तो शब्दकोष देखते हैं पर कभी हिंदी का शब्द समझने के लिए शब्दकोष नहीं देखते…हमारी मानसिकता ही आढ़े आ जाती है…मन से स्वीकार करना पहले ज़रूरी है….
जी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका , उम्मीद है की इस दर्द को हर हिंदुस्तानी समझने की कोशिश करेगा ,
एक देश क्या होता है, उसकी भाषा , संस्कृति, सभय्ता , और उस देश के लोग जो उस देश को शिखर पर ले जाने के लिए काम करते है, माना हम शिखर पर पहुंच भी गये, और उस वक्त हमारे पास गर हमारी कोई धरोहर नहीं रही तो हमारा अपना कोई वजूद नहीं रह जाएगा| इस बात में कोई दो राय नहीं है की हमे वक्त के साथ आगे बढ़ना होगा किन्तु अपनी हर अच्छी धरोहर के साथ , कुरीतियों को पीछे छोड़ते हुए |
पुनः तहे दिल से आपका धन्यवाद |
जय हिन्द , जय हिंदी
यथोचित……बहुत सही कहा है आपने….
हिंदी की उतनी भी बुरी दशा नहीं है शायद।। आज तमाम अहिन्दी भाषी राज्यों में लोग समझते ही नहीं वरन धड़ल्ले से इसे बोलते है।। उत्तर पूर्व के राज्य में कही भी चले जाईये आज आपको हिंदी बोलने वाले मिल जायेंगे।। खुद मै असम में बहुत लोगों को हिंदी में रचना करते देखता हूँ।। रही बात english की तो कुछ विश्व पटल पर रोजी रोटी से जुड़ गयी है इंग्लिश।। जिन मुल्को में उनकी खुद की भाषा में काम होता है वहा भी बड़ी तेजी से इंग्लिश फैली है।। हिंदी को रोटी बेटी जैसे रिश्ते के साथ जोड़ना है बस।।
आपकी रचना अच्छी है।।।
मैं पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूँ,आपकी बात से मैं सहमत हूँ की हिंदी की दशा उतनी भी बुरी नहीं , किन्तु जो बात मैं सभी तक पहुंचना चाहती हूँ वो यही है जो आपने कही है की हमे हिंदी के परचम को वहां तक ले जाना होगा जहां हिंदी भी रोजी रोटी की भाषा बन सके , मेरी रोजगार और शिक्षा की जो पंक्ति है वो इसी बात की गवाही है की अगर इसी तेजी से हम रोजगार के नाम पर अगर हिंदी छोड़ दूसरी भाषा अपनाएंगे और आने वाली पीढ़ी को अंग्रेजी में ही पढाएंगे तो शायद फिर लौटना मुश्किल हो जाएगा इसलिए हिंदी का वर्चस्व हमे संभाल कर रखना होगा, हमारे संस्कृत में लिखे ग्रन्थ ज्ञान का खजाना है पर अब हम मजबूर है उसे नहीं पढ़ सकते और नहीं समझ सकते ये बात मैं हर आम आदमी की कर रही हूँ कुछ चुनिंदा लोगो की नहीं.
आपके विचारों का मैं आभार व्यक्त करती हूँ, और आपकी कही बात को मैं और गम्भीरता से सोचूंगी |
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद |
जय हिन्द , जय हिंदी
mam निश्चित रूप से आपकी रचना एक गंभीर विषय और भविष्य की चुनौती की ओर इंगित करती है, मै इसे इतर नहीं सोचता, पर हाँ मै एक आशावादी दृष्टिकोण भी रखता हूँ।। बचपन से अब तक बहुत कुछ बदला है, इन बदलावों में मैंने भी कही न कही इस बात का आभास किया हैं की निज भाषा ही उन्नति का मूल है।। आपकी रचना सजग करती है।। हिंदी की प्रगति जो मैंने अपने आँखों से देखी उसी को उपर व्यक्त किया था।।।
निश्चित ही हिंदी को वह स्थान नहीं मिल पाया है जिसकी वह हकदार है।।
आपका भी मै आभार देता हूँ, हिंदी की एक सजग सिपाही बनने के लिए।।।।
आपके साथ और विश्वास के लिए धन्यवाद
आपकी रचना विचारणीय है । बहुत साधारण सा उदाहरण है आज कल के युवा हिन्दी गणित की संख्याओ को समझ नहीं पाते, बेशक आने वाले कल मे ये कही विलुप्त ही ना हो जाये ।
हम अपनी विरासत को संभालेंगे नहीं तो आने वाली पीढ़ी को क्या सिखा पायेंगे ।
आपके विचार चिंतनीय हैं । आपके पेशे के प्रतिकूल आपका हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम सराहनीय है ।
सजग प्रयास के लिए अनेकानेक धन्यवाद ।।
बहुत-बहुत धन्यवाद मनीष जी, उम्मीद है हम सभी मिलकर ऐसा वक्त कभी नहीं आने देंगे |