Homeगिरिराज शरण अग्रवालमेरी झोली में आकाश मेरी झोली में आकाश विनय कुमार गिरिराज शरण अग्रवाल 13/03/2012 No Comments इतना बड़ा आकाश मेरी झोली में आ जाए मैंने बार-बार सोचा था अब जब आकाश मेरे पास आ रहा है तो मेरी झोली बहुत छोटी हो गई है । आकाश को समेटने की इच्छा हर कोई करता है किंतु झोली का आकार बढ़ सके आकाश को समा लेने को ख़ुद में ऐसी कोशिश यहाँ कौन करता है ? Tweet Pin It Related Posts एक हो जाएँ संबंध ओ कठोर About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.