बस यूँ ही ….
१. गैरों में रौशनी तलाशता रहा मैं
मेरे अपने तो मेरा हमसाया थे
चकाचौंध के परे कभी देखा ही नहीं
२) तक़दीर के खंजर से लहूलुहान हो गए तो क्या
खुद को मरहम लगाना अब मेरी फितरत में है
३) मेरी उमंगो के हौंसलों की बात न पूछो
अपनी इजाज़त लेना भी इन्हें गवारा नहीं
४) किस्मत की क्या मजाल जो हमें जुदा कर सके
जब खुदा मिला देता है हमें बार बार
५) वैसे तो हम हया के धागों में बंधे रहते हैं
न जाने क्यों उनसे बेबाक हो जाते हैं
५) वो मेरी छुपाने की अदा के कायल हो गए
हम उनकी जताने की अदा के कायल हो गए
७) मेरे हुस्न की तारीफ उसने कुछ इस तरह की
चाँद की चांदनी भी शर्मसार हो गयी
मेरे हुनर की कद्र उसने कुछ इस तरह की
शायर की शायरी भी दरकिनार हो गयी
८) खुदा से शिकायत है तो बस इतनी
जब आसमा छीन लेना था तेरी रज़ा में शामिल
फिर क्यों सिखाया मुझे उड़ान भरना
९) चाहत क्या होती है
तुझे जी कर जान लिया हमने
जीना क्या होता है
तुझे चाह कर जान लिया हमने
SWATI NAITHANI
मेरी उमंगो के हौंसलों की बात न पूछो
अपनी इजाज़त लेना भी इन्हें गवारा नहीं
चाहत क्या होती है
तुझे जी कर जान लिया हमने
जीना क्या होता है
तुझे चाह कर जान लिया हमने
बहुत खूब….अति उत्तम….
“गैरों में रौशनी तलाशता रहा मैं
मेरे अपने तो मेरा हमसाया थे
चकाचौंध के परे कभी देखा ही नहीं”.
वाह स्वाति आपकी कलम और भावनाओ को प्रणाम. हर एक शेर एक दूसरे से बेहतरी में प्रतिस्पर्धा करता नज़र आता है. शब्दों में वज़न डालना कोई आपसे सीखे.
बहुत खूबसूरत स्वाति प्रत्येक वक्तव्य स्वयमेव पूर्णता से भरा हुआ है ………लाजबाब !!
Thank you everyone for your appreciation!! I’m trying to write better each day as hindi is not my forte.