हौसलो को करके बुलंद,
अपनी तकदीर का
रोशनी से अंधेरे को मिटाते चलो ।
जख्मो को दे के मरहम ,
वक़्त का साथ निभाते चलो ।
लौट आयेंगे वो खोये फरिश्ते भी ,
जिनके तुम कायल हो,
तुम अगर अपनो का साथ निभाते चलो ।
चलते रहो जब तक मंजिल न मिले,
दुर निकल आओ इन गमो से,
जिदंगी गम मे जिने का नाम नही,
दर्द को भी सिद्ददत से सहलाते चलो ।
हाथो मे इक दुजे का हाथ रखकर,
दिये को दिये से जलाते चलो ।
उम्मीदो भरी गहरी साँसे लो ,
तकदीर का ताला तोड़ ,
तुम गैरो का भी साथ निभाते चलो ।
चलते रहो रुको नही,
घबरा रहे गर तो घबराते चलो ।
मंजिले करीब आती है चलते रहने से,
न किसी को ठुकराओ सभी को अपनाते चलो ।।
काजल सोनी
क्या बात है…साथ ले के चलने का अंदाज़-ए-ब्यान….बहुत ही खूब….
जीवन चलने का नाम
चलते रहो सुबह शाम
उत्तम भाव
सकारात्मक विचारधारा को बल प्रदान करती प्रेरक रचना !!