*बाल कविता(चौपाई छंद)*
प्रज्ज्वल, रिद्धि नाम हमारे।
हम हैं बच्चे मन के न्यारे।।
मम्मी की आँखों के तारे।
पापा को प्राणों से प्यारे।।
मम्मी हमको सुबह जगाती।
ब्रश करवाकर नित नहलाती।
मन पसंद पकवान बनाती।
बड़े प्यार से हमें खिलाती।।
ऑफिस से जब पापा आते।
टॉफी और खिलौने लाते।।
बात-बात पर हमे हँसाते।
घोड़ा बनकर हमे घुमाते।।
होमवर्क मम्मी करवाती।
अच्छी अच्छी बात सिखाती।।
जब हम सोते लोरी गाती।
प्यार बहुत हम पर बरसाती।
पापा रोज हमें टहलाते।
नयी नयी बाते बतलाते।।
कैसे स्वस्थ रहें सिखलाते।
जीने की वह राह दिखाते।।
दादा जी संस्कार सिखाते।
रामायण का पाठ सुनाते।।
दादी परी-लोक ले जातीं।
कथा कहानी गीत सुनाती।।
छुट्टी के दिन धूम मचाते।
खूब खेलते हम हरसाते।।
गुल्ली-डंडा लूडो कैरम।
मिलजुलकर हम खेलें हरदम।।
मम्मी पापा दादी दादा।
सबका जीवन सीधा-सादा।।
इस दुनिया में जब तक ये हैं।
हम बच्चों के बड़े मजे हैं।।
!!!
!!!
✍सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”✍
बहुत ही सुंदर अंदाज़ आप का. संयुक्त परिवार का चलन लुप्त सा ही हो गया है… बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति……
babucm भाई साहब, बाल गीत के रूप में मेरी रचना की प्रशंशा में आपने जो उद्दगार दिए है उनके लिए महती धन्यवाद।।।।।।।
साथिओं यह रचना मैंने अपने बच्चे द्वय प्रज्ज्वल और रिद्धि के लिए लिखी।। बहुत कुछ ऐसा ही हम सभी के घरों में होता है।। बस मेरी लेखनी ने कलमबद्ध कर आपके सामने रखा है।।।।।।
बाल कविता के माध्यम से पारिवारिक जीवन शैली का खूबसूरत परिदृश्य प्रस्तुत किया है आपने ……जब तक समाज में ऐसी विचारधार उंन्मुख है तब तक अपनी संस्कृति और सभ्यता सजीव है !!.अति सुन्दर सुरेन्द्र !!
महोदय निवातियाँ जी, आपकी इतनी खुबसूरत और अद्वितीय प्रतिक्रिया के लिए शब्द नही मेरे पास।। आशीर्वाद के लिए याचक के रूप में करबद्ध खड़ा।।।
सूंदर बाल कविता ……