? ?दर्द बेवफाई का??
वक्त बेवक्त तुम आगोश ए तसव्वुर में आया न करो।
तोड़ कर किसी का दिल अपना घर सजाया न करो।।
भ्रम है कि तुझे जमीं पर उतारा गया है चाँद बना के।
हुश्न एक जगमगाती शाम है, इस पर नाज खाया न करो।।
जिस हाल में भी हम थे, दौड़े आये तेरी एक पुकार पर।
जों न मिलना हो तो फिर मूझको यूँ ही बुलाया न करो।।
हम तड़पे है तेरे नूर ए दीदार से, कोई और न तड़पे।
अपना बहरूपिया चेहरा हर किसी को दिखाया न करो।।
कहते है, दिल से पुकारों तो कब्र के मुर्दे भी जी पड़ते है।
तुम तो फिर भी जिन्दा हो, यूँ बुत बन न जाया करो।।
बेरहम रहने दे, मत कोशिश कर मेरा दर्द समझने की।
दर्द की इन्तहा देख ली मैंने, अब और अजमाया न करो।।
सोया भी मै सोचकर काश ख्वाबों में ही तुम दिख जाओ।
यादों का बवंडर बन तुम मेरी नीदें चुराया न करो।।
“कुशक्षत्रप” बर्बाद हुवा एक मुक्कमल वफ़ा की चाह में।
यारो जवानी नायाब तौफा है रब का, हुश्न पर लुटाया न करो।।
✍सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”✍
दोस्तों गजल के रूप में पहली रचना है।। अगर कुछ अच्छा लगे तो आगे भी प्रयास करूँगा।। बेबाकी से कहना चाहता हूँ कि अगर आप लोंगो के पास कुछ रचनात्मक सुझाव हो तो अवश्य साझा करें।। मुझे आपके अनुभव की दरकार है।।
It is really a fact what most of youth undergo…
You beautufully portrayed the feeling…
Keep it up!
लाजवाब………
Babucm जी आपकी प्रतिक्रिया निसंदेह मेरा उत्साहवर्धन करेगी।। आभार आपका
अति सुन्दर सुरेंद्र बहुत लाजबाब ग़ज़ल पेश की है……!!
आपके उत्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि आभार।।
बहुत बढ़िया ……………
मधुकर सर आपका सप्रेम आभार
बहुत खूब सुन्दर रचना
भाई मनोज जी, खुबसूरत प्रतिक्रिया के लिए आभार।।।