Homeअंकुर शर्माशायरी2- तमन्नायें शायरी2- तमन्नायें Ankur swet अंकुर शर्मा 05/05/2016 1 Comment तुम क्यों हुए शामिल मेरी तमन्नाओं में ज़ालिम, तुम्हें तो ख्वाब के भी ख्वाब में कहीं गुम हो जाना था, अगर अब भी कुछ शर्म-ओ-हया रह गयी हो दिल में, तो कहा ये मान लो मेरा ‘जीयो और जीने दो ‘; Tweet Pin It Related Posts इश्क़ की चीख़ कुछ वक़्त……. – गज़ल ‘गज़लों में गज़ल’ – कविता About The Author Ankur swet One Response निवातियाँ डी. के. 05/05/2016 भावाभिव्यक्ति अच्छी है ………कहने का अंदाज और बेहतर हो सकता था ! Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
भावाभिव्यक्ति अच्छी है ………कहने का अंदाज और बेहतर हो सकता था !