मैं तुझसे दूर हो गया…
वो तेरा हर बात पे मुस्कुराना…
गालों में गढ़े पड़ जाना…
वक़्त का वहीं अटक जाना…
सब सपना सा हो गया…
मैं तुझसे दूर हो गया…
तुम्हारा मेरे लिए तड़पना…
समय से बेखबर बातें करना…
कुछ बोलूं तो मुझ पे बिफरना…
सब काफूर हो गया….
मैं तुझसे दूर हो गया…
बालों में उंगली घुमाना…
होठों को सिकोड़ना…
उसपे शरमा जाना…
सब नासूर सा हो गया….
मैं तुझसे दूर हो गया…
बातों बातों में रूठना…
मनाने पे झूठे नखरे दिखाना…
फिर मुझसे लिपट जाना…
सब पराया सा हो गया….
मैं तुझसे दूर हो गया…
मेरे दिल में तेरा ही दिल धड़कना…
तेरी साँसों में मेरा ही बसना…
नींद में उठ उठ के चलना…
सब धोखा सा हो गया…
मैं तुझसे दूर हो गया…
अँधेरे में चुप्पके से आना…
सरगोशिओं से धड़कने बढ़ा देना…
और उसपर खिलखिलाना…
सब ग़मगीन सा हो गया…
मैं तुझसे दूर हो गया…
ना कोई चाहत थी ना शिकवा…
मोहब्बत थी तुझसे कसूर बस इतना…
फिर भी यह क्या हो गया…कि
बब्बू तुझसे दूर हो गया….
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/सी.एम. शर्मा (बब्बू)
इस रचना में अत्यधिक तड़प दिखती है …….
सही फरमाया आपने….आभार आपका
ह्ह्रदय में उमड़ी तड़प को बखूबी शब्दमाला में गूथकर पीड़ा की अनुभूति का अति सुन्दर चित्रण किया है आपने ………उम्दा बब्बू जी !!
तहदिल से शुक्रिया आपकी नज़रे इनायत का….
क्या babucm जी, कौन सी अनजानी कहानी बयाँ कर रहें है आप।।। बहुत खूब।।
हा हा हा….शुक्रिया….आप का बहुत बहुत शुक्रिया….