परीयो के आगोश से ऊतर कर ,
मासुम चेहरा लिए जब “मेरी बेटी” मेरे घर आई थी ,
कुछ को अच्छी लगी,
कुछ को ना पसंद आई थी ।
उसकी खिलखिलाहट से गुंज उठा था सारा घर,
पूरे घर मे बस वही समायी थी ।
जब से “मेरी बेटी” मेरे घर आई थी ।।
इक गहरे रिश्ते मे बंधी मै उसके,
पूरी सिद्ददत से मुझमे वो समायी थी ।
नन्हे कदमो लिए वो बढ़ती चली गई,
मां मां कहते हुए ढूंढती थी मुझे,
वो तो बिलकुल मेरी ही परछाई थी ।
थी खोइ मै उसकी मासूमियत पर ,
जब से “मेरी बेटी “मेरे घर आई थी ।
सबका पुरा ध्यान रखती,
पिता के मन मे भी समायी थी ।
था जाना एक दिन उसे मुझसे दुर ,
जब बजनी शहनाई थी ।
वो तो मेरी ही बेटी थी,
क्यू कहा किसी ने की पराई थी।
खुब खुशिया बाटी उसने जब से “मेरी बेटी ” मेरे घर आई थी ।।
खुब सजाया उसने मेरे घर को,
स्नेह का बंधन बांध के,
अब खुद सज कर पिया के मन मे समायी थी ।
दिल का टुकड़ा ले गया कोई हमसे,
जब हुई उसकी बिदाई थी ।
घर को घर बनाने वाली,
मेरे घर मे दे गई तन्हाई थी ।
सबके गम को समझने वाली ,
“मेरी बेटी ” ही थी जो मेरे घर आई थी ।।
काजल सोनी
बेहद खूबसूरत रचना ………..
बहुत भावुक…मनमोहक…सच में बेटियां होती ही ऐसी हैं…जिस घर में बेटी नहीं वह घर शमशान जैसे होता…बहुत बहुत खूबसूरत…हर बेटी का आँगन खुशिओं से भरा रहे…दुआ मेरी…
दिल से रिप्लाई भेजा आपने धन्यवाद आपका
“हर सुख दुःख की साथी होती है बेटिया
सचमुच में बहुत प्यारी होती है बेटिया !! ”
अत्यन्त खूबसूरत रचना
बेटीयो को स्नेह देने का शुक्रिया