About The Author
Born at Hapur, Uttar Pradesh. Studied at Meerut University and Banaras Hindu University. Currently working as Scientist in TIFAC, New Delhi and stays at Ghaziabad. Has hobby of writing both Hindi and English Poems. Published four Hindi poetry books titled, "Yadon Ke Nasoor" , "Rooh Ke Ehsaas" , "Nishaniyan" and “Tadap”, which are easily available online at various e-commerce sites such as flipkart and amazon etc. Few english poems have got international recognition and have been used by people in their presentations, articles and reserach work.
Bahut khub Shishir ji Heart Touching lines likhi hai aapne
Thank you very much Rajeev for your comment
सत्य कहा शिशिर जी ……….प्रेम और घृणा दोनों एक सिक्के के दो पहलु है दोनों संग रहते है …..फर्क इतना है की वयक्ति अपनी समय और परिस्थितियों के अनुकूल मानसिकता के अनुरूप स्वीकार और अपनानाता हैा
रचना पढ़ने के लिए आपका आभार निवातियाँ जी
शिशिर मधुकर जी, जब रुसवाई में कोई दूर जाता है तो तन्हाई के पलों में वह आत्ममंथन करता है की क्या कारण थे जो ये दरमाँ दरार दिए….आपके जीवन के अनुभव दर्शाती है आपकी रचना
सुरेंद्र आपके ममस्पर्शी कथन के लिए आभार
मोहब्बत का है दुश्मन ज़माना …………………. बहुत अच्छे मधुकर जी !!
बिल्कुल सच है कि दूसरों की ख़ुशी किसी से देखी नहीं जाती ……………………. बहुत ही अच्छे मधुकर जी !
सर्वजीत आपकी सराहना के लिए अनेकों आभार
बहुत सही चित्रण किया है आपने समाज में प्रेम के जज़्बातों को लेकर जो एक विरोधाभासी प्रतिकिर्या होती है….निवातियाँ जी की बात बहुत सही है….प्रेम तो सब ही करते हैं…पर परिस्थितियों के वश में…चाहे वह समाज की हों या घर की कोई परम्परा की….हम कहीं न कहीं प्रेम के विपरीत खड़े होते हैं…हो सकता वह पुर्णॅतया घृणा न हो…अंदर से हो सकता हम चाहते हों की ऐसा हो….पर शायद साहस नहीं जुटा पाते उसका विरोध करने का….
Thank you Babbu ji for your detailed comment