भूल जाने की कसमें हैं,फिर मिलने का बहाना है,
ये तेरा दिल है जानेमन,या कोई कैदखाना है;
कि ऐसे मूँद रखा है,तूने आगोश में अपने,
ना मेरी नींद आँखों में,अगर है तो तेरे सपने,
वो तेरी रोज रूसवाई ,मेरा हंसकर मनाना है,
ये तेरा दिल है जानेमन,या कोई कैदखाना है;
वो मेरा पूछना तुझसे,कैसा बंधन अनजाना है,
तेरा हंसकर के कहना कि,ये उल्फ़त का फँसाना है,
यक़ीनन ‘कैदखाना’ है,यक़ीनन कैदखाना है
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पसंद आये तो उत्साहवर्धन जरूर करें
रणदीप चौधरी (भरतपुरिया)
Very nice,………….!!
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अनंत आभार निवातियाँ जी ☝
सुन्दर रचना……………
आपके उत्साहवर्धन करने पर अनंत आभार
सुन्दर Randeep Choudharyji….
आभार
रणदीप जी, बेहद ही खूबसूरती से आपने लब्जो को बया किया है।। मै मुरीद हूँ आपकी इस रचना का।।
आपका अनंत आभार
बस आशीर्वाद बनाये रखे
खूबसूरत रचना….
आपकी तारीफ़ो से ही ये उत्साह आता है लिखने का
आभार ??