Homeगिरधर राठीउखड़ी हुई नींद उखड़ी हुई नींद विनय कुमार गिरधर राठी 12/03/2012 No Comments सच वह कम न था नींद उखड़ी जिससे न ही यह कम है – उखड़ी हुई नींद जो अब सपना नहीं बुन सकती अंधेरे में या रोशनी जलाकर जो भी अहसास है सच वह भी कम नहीं है पर नींद वह क्या नींद जो बुन न सके सपने ! कैसी वह भाषा जो कह न सके – देखो ! Tweet Pin It Related Posts कायाकल्प दिल्लीनामा उनींदे की लोरी (कविता) About The Author विनय कुमार Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.