भावनायें हों गयीं हैं चकना – चूर अब |
राहें सारी हों गयीं हैं शूल से भरपूर अब |
था कल- तक जिनको नहीं कोई जानता ,
एक दिन में हो गये हैं वे सभी मशहूर अब |
कार्य के प्रति थे सजग जो हर समय ,
देख लो हो गये हैं वे सभी मगरूर अब |
पत्थरों को जो कभी भगवान का थे रूप देते ,
हो गयें हैं स्वास्थ्य से , वे सभी मजबूर अब |
चाहतें हैं फिर बनायें ताज जैसी एक इमारत ,
पर हाथ से लाचार हैं , वे सभी मजदूर अब |
सोचकर कि घाव छोटे ध्यान उस न दिया ,
बन गये हैं देख लो , वे सभी नासूर अब |
द्रोपदी का चीर खिंचते , मूक होकर देखते ,
हो गये हैं , देख लो , वे सभी ही सूर अब |
पास रहते थे कभी , मन में बसे थे जो मेरे ,
हो गये हैं, देख लो , वे सभी ही दूर अब |
था कल तलक पंकज जिसे देखना न चाहता ,
बन गयें हैं , देख लो , वे नयन के नूर अब |
आदेश कुमार पंकज
समय चक्र बहुत कुछ बदल देता है. बेहतरीन रचना
बहुत खूब. काल का पहिया घूमे रे भईआ.
वक़्त के साथ साथ परिस्थितियां बदल जाती है
सूख जाते है बहते दरिया, कही बंजर में बहार आ जाती है !!
मन के भावो को शब्दों में उकेरे का खूबसूरत कार्य ………..बहुत अच्छे आदेश !!