गज़ल –: सारे शहर में जुल्म है !
ग़ज़लकार –: अनुज “इंदवार”
सारे शहर में जुल्म है आक्रोश है !
पर यहाँ क्यों आज तू खामोश है !!
जुल्म को सहना भी एक जुल्म है !
क्यों समझता है कि तू निर्दोष है !!
बस्तियां सारी वहाँ की जल रहीं !
बिल में दुबका तू जहाँ खरगोश है !!
छिन गये है निवाले , पर तुझे क्या ?
यहाँ दाल-रोटी में तुझे संतोष हैं !!
ठोकरों से डर गया इंसाफ अब !
बेईमान का चारो तरफ़ जयघोष है !!
क्या बात है आपकी कलम बड़ी धारदार हो रही है………….बहुत अच्छे अनुज !!
आपने हमेशा ही मेरा हौसला बढ़ाया है , मैं आपका आभारी हूँ !!
जोश से भरी रचना. बहुत खूब.
बहुत अच्छे अनुज जी
वर्तमान पर कटाक्ष करती सुदृढ़ अभिव्यक्ति |
दिल में जोश भरने वाली और कुछ सोचने को मजबूर करने वाली रचना ………. बहुत खूबसूरत अनुज जी !!
आपने हमेशा ही मेरा हौसला बढ़ाया है , मैं आपका आभारी हूँ !!
बहुत बढ़िया अनुज जी ऐसे ही लिखते रहिये
खूबसूरत गज़ल अनुज जी !
मीना जी तारीफ के लिये आभार !!