गज़ल –: सारे शहर में जुल्म है !
ग़ज़लकार –: अनुज “इंदवार”
सारे शहर में जुल्म है आक्रोश है !
पर यहाँ क्यों आज तू खामोश है !!
जुल्म को सहना भी एक जुल्म है !
क्यों समझता है कि तू निर्दोष है !!
बस्तियां सारी वहाँ की जल रहीं !
बिल में दुबका तू जहाँ खरगोश है !!
छिन गये है निवाले , पर तुझे क्या ?
यहाँ दाल-रोटी में तुझे संतोष हैं !!
ठोकरों से डर गया इंसाफ अब !
बेईमान का चारो तरफ़ जयघोष है !!