तारीफ करता है जमाना जिस चॉँद की
मै भी उसका दीवाना था,
बैठकर चाँदती रातो मै उसको मैनै भी
कई घंटो तक निहारा था,
दूर से देखकर बेसुमार सुंदरता उसकी
मै भी नाज़ो से इतराता था,
करके तुलना जिससे अपने हबीब की
अंधेरो को सदा रिझाता था,
बेखबर था बडा हकीकत से अनजान मै
जलती शमां का परवाना था,
टकरा गया एक दिन राह में एक फकीर से
शायद बेवफाई का वो मारा था…..!
मैनै पूछा ? तू, इतना बता दे
ऐ खुदा के बंदे.…!
इस चाँद की, चाँदनी का राज क़य़ा है?
चाहत मे चकोर के
जान गवाने का राज कया है ?
जबाब मे बोला …..!
क्या करेगा जानकर तू राज को राज रहने दे………!
बेहतर होगा जो परदे की बात परदे मे रहने दे ……..!!
असलियत अगर जान गया दुनिया से भरोसा उठ जायेगा,
देगा दोष फिर तू भी खुदा को , दिल तेरा जब टूट जायेगा ,
कहेगा बेवफा किसी को, ना हँसेगा फिर ना ही रो पायेगा,
छोडकर ये जन्नत की सौगात मुझ सा फ़कीर बन जायेगा ……..!!
ना ये चाँद वैसा है ना महबूब उस जैसा है तेरा
जो देखा आज तक, नजरो का धोखा था……!
ये चाँद काली मिटटी, जहा पानी न हवा का फेरा,
इसकी चमक के पीछे आग का गोला था…..!
उसे कहता है हमदम लूटा तन मन धन जिसने तेरा,
देह को अपना कहे, रूह को तूने कव टटोला था …..!
आज नही तो कल रूठ जायेगा तुझसे जवानी का टट्टू तेरा
पूछैगा खुद से सवाल, क्यू जीवन यूँ भर ठगेला था …….।।
वकत के साथ सब ढल जाते हमदम हो या चाँद तेरा,
तू आज भी अकेला है, कल भी अकेला था………!!
ये असर है उमर की नादानियो का कौन यहॉ किसका दीवाना था,
साथ छोडकर एक दिन “राधा” का “बनवारी” को भी जाना था ….!!
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डी.के. निवातियॉ[email protected]
बेहतरीन……………रचना. निवातियाँ जी. बहुत दार्शनिक बात आपने बड़े ही सौम्यता से कह दी. अत्यन्त खूबसूरत.
शुक्रिया शिशिर जी …….प्रज्ञा भाव से रचना नजर करने के लिए हार्दिक आभार !!
मोहपाश के चश्में को हटा कर यथार्थ से अवगत कराती अति सुन्दर रचना. मनमोहक.
रचना के प्रति आपकी उत्कटता के लिए हार्दिक धन्यवाद व् आभार !!
दर्शन और यथार्थ का अनूठा संगम .निवातियाँ जी बहुत सुन्दर रचना है ।
बहुत अच्छी रचना ………………..!!
बहुत बहुत धन्यवाद अनुज !!
अच्छी रचना ………………..!!
बहुत बहुत धन्यवाद अनुज !!
आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया के ह्रदय से आभार मीना जी !
बहुत खूब अति सुंदर निवातियाँ जी
आपका बहुत बहुत धन्यवाद मनोज !!