जैसे ही आज कुत्तें पर नजर गड़ी,
बस अपनी कविता निकल पड़ी।।
महल अटारी हो या फिर खेत खलिहान
गली मुहल्ला हो या हो शमशान
जगह नहीं कोई, जहाँ न मिलते,
हर जगह घूमते, सूंघते, फिरते
इनकी प्रकृति भी इंसानों से मिलती जुलती,
कभी त्योरी चढ़ती, कभी नाक भौ सिकुड़ती
ये भी अपनों पर भौकते,
अपनों का ही राह रोकते,
काटते है अपनों को समझ पराया,
खुद को कभी परख न पाया
अपनों का लहूँ बहाने की इनको सनक चढ़ी
बस अपनी कविता निकल पड़ी।
इनका जीवन संघर्ष भी हमारे जैसा,
कोई कार में, तो कोई गटर में है घुसा
किसी का नसीब बिस्किट और बोटी,
किसी का निवाला बस सुखी रोटी
कोई भब्य महलो का सह्जादा,
कोई मालकिन की गोदी का राजा
कोई एक आसरे की चाह में,
कितनी मुस्किल हो राह में
गली गली छान मारता,
होता न नसीब कुछ तो फांक मारता
इंसानों का जीवन कुत्तों के सदृश्य खड़ी
बस अपनी कविता निकल पड़ी।
हमारे समाज में भी कुछ कुत्ते,
अपनों को काटते, अपनों को नोचते,
कुछ टुकड़ो पर किसी के पलते,
जीवन भर उनकी गुलामी करते,
दूम हिलाते है, चुमते है उनके पावों को,
खुद की गर्दन मोड़ चाटते है निज घावों को,
गिरवी रख दी है अपना स्वाभिमान,
कुत्तो से ज्यादा नहीं उनकी पहचान
कईओ ने लिख रखा है कुत्तों से सावधान,
समझना मुस्किल घर में कुत्तें है या इन्सान,
कुशक्षत्रप की ऐसों से न कोई आस जुडी,
बस अपनी कविता निकल पड़ी।।
सुरेन्द्र नाथ सिंह “कुशक्षत्रप”
बहुत खूब परिभाषित किया आपने चापलूसी को अपने अंदाज़ में. बहुत बढ़िया.
babucm जी आपका प्रतिकिया अति उत्तम है।। मैंने जीवन के प्रत्येक पहलू में झाकने और उसे कुत्तो के जीवन से दर्शाने की कोसिस की है।। आपका आभार।। आशीर्वाद हेतु करबद्ध
आज के सामाजिक परिवेश में आदमी की फितरत पर सही कटाक्ष
धन्यवाद सर।। आशीर्वाद बनाये रखिये।। आशीष के लिए करबद्ध
बदलते स्वरूप में मानसिक प्रवृति के स्तर पर सुन्दर कटाक्ष !!
इस संदर्भ में मेरी रचना आदमी v/s कुत्ता को नजर करियेगा !!
डी के निवातियाँ जी इस आशीर्वाद भरी टिपण्णी के लिए महती आभार।।।।। आपकी रचना का भी रसास्वादन कर अपनी विचार को रखने का प्रयास करता हूँ।