चेहरा देखत दिन गया,
ख़्वाब देखत रात !
जग देखत जीवन गया,
कुछ ना आया हाथ !!
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कस के कमर कुछ करनी कर ले ,
अगर चाहे चलना वक़्त के साथ !
कारवाँ लुटते नाही लागत है देर,
अकेला रह जावेगा खाली हाथ !!
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मन भटके न मंजिल मिले
बिन पुष्प चन्दन सजे न थाल
जीवन सत्य को जान ले बंधू
मिल जायेंगे तुझे जगन्नाथ !!
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डी. के. निवातियाँ [email protected]
बहुत ही खूब. सो फीसदी सत्य वचन. पर मायाजाल में उलझा मन न देखता न सुनता तब तक, जब तब गहरी चोट न खाये.
रचना को गहनता से नजर करने का हार्दिक आभार !!
अति सुंदर तथा सत्य के करीब।।।
बहुत बहुत शुक्रिया ….!!
जीवन का सत्य, कर्म की प्रेरणा और साथ में आध्यात्मिकता भी ………. बहुत खूब निवातियाँ जी !!
तहदिल से नवाजिश सर्वजीत जी !!
जीवन सत्य का सजीव चित्रण
तहदिल से नवाजिश शिशिर जी !!
यथार्थ परक और मर्म स्पर्शी रचना ।अति सुन्दर !!
तहदिल से नवाजिश मीना जी !!
अति सुन्दर ,,,,,, ,, ,,,,,,,