आये वो बहार की तरह
छाए वो करार की तरह
न हमें देखा न जाना
चले गए किसी तेज कार की तरह
हमने बहुत रोका वो रुकी नहीं
हमने आवाज लगाई उसने सुनी नहीं
चलता कूदता गिरता पड़ता उसके नजदीक आया
उसने मुझे देखा पर उसने मेरी तड़प देखी नहीं
देखकर उसे धड़कन तेज होगई
बुद्धि हमारी हमसे खोगई
करना था उससे प्यार का इज़हार
पर उसी समय हमारी किस्मत सोगई
देखते देखते उसके भाई आगये
आँखों से मुझे कच्चा खागये
याद आये मजे सरे पाप
चपल उठाई और हम भाग गये
मरते मरते बच गया
सांड के टकराने से पहले हट गया
पर जादा दिन तक सुधरा नहीं
आज भाई फिर किसी पर मरगया
मोहित राजपाल:9034686681
गुदगुदाती हास्य रचना
धन्यवाद शिशिर जी।
मन के भावो को अच्छे शब्दों में तरासने का खूबसूरत प्रयास !!
आपको देखकर कुछ उम्मीद हम में भी जाग उठती है।धन्यवाद जो अपने सराहा।