हर खेल में,
हर दौड़ में,
उससे जान बूझ जाती हूँ हार,
पर उसमें मिलती है मुझे
जो खुशी अपार,
उसे कागज़ पर
नहीं पाती मैं उतार।
उसके ऊँचे माथे को,
उसके फैले पलकों को,
उसके कोमल गालों को,
उसके मीठे होठों को,
चूम-चूम जो असीम सुख
मैं पाती हूँ,
उसे कागज़ पर
उतार नहीं मैं पाती हूँ ।।
उसकी तुतलाती बातों को,
उसके हजार सवालों को,
उसकी चंचल चालों को,
मम्मा कह,
उसके लिपट जाने को,
कैद कर अपने पलकों में
मैं बाँध रख लेती हूँ,
बाँध कर इन पलों को,
जो असीम सुख
मैं पाती हूँ,
सच-
उसे कागज़ पर
उतार नहीं मैं पाती हूँ ।
पाकर अपने बेटे को,
पाकर उसके बचपन को,
पाकर उसके नटखटपन को,
पाकर उसके भोलेपन को,
सारे सुखों से बड़ा सुख
जो मैंने पाया है,
सच-
मैंने उसे कागज़ पर
कभी उतार नहीं पाया है ।
कभी उतार नहीं पाया है ।।
अलका
Very nice expression
धन्यवाद……………
प्रियंका माँ की ममता को अभिव्यक्त करने की खूबसूरत रचना
धन्यवाद……………….
वात्सल्य के अभिभूत माँ की ममता का खूबसूरत चित्रण ………बहुत अच्छे प्रियंका !!
धन्यवाद……………..