राह में साथ थे तुम बहुत देर से,
इश्क़ मुझको हुआ पर बहुत देर से ।।
आ गया हूँ मैं अब दूर तुझसे बहुत,
तुमने आवाज़ दी पर बहुत देर से ।।
ज़िन्दगी से किया था सवाल एक मग़र,
उनका आया जवाब पर बहुत देर से ।।
ज़ुल्म मुझपे किये मेरी ही जान ने,
बात आई समझ पर बहुत देर से ।।
ज़िन्दगी भर बहुत बुत-परस्ती तो की,
दिल में जागा ख़ुदा पर बहुत देर से ।।
— अमिताभ आलेख
बहुत अच्छे अमिताभ जी………… “देर आये दुरुस्त आये” को सार्थक कर दिया आपने
तहे दिल से शुक्रिया धर्मेन्द्र जी.
बहुत सुन्दर रचना है
शुक्रिया रिंकी.
— आलेख
अच्छा लिखा है अमिताभ
स्वागत है शिशिर जी. धन्यवाद.
— आलेख