वो समय न रहा ,
वो विचारगी न रही।
तरक्की के नाम पर ,
वो सादगी खो रही।।
वो रिश्ता न रहा ,
वो नाते न रही।
खून-पसीना एक कर दे ,
वो भाईचारा खो रही ।।
वो खेत न रहा ,
वो खलिहान न रही।
विकाश के नाम पर ,
वो हरियाली खो रही ।।
वो नुख्सा न रहा ,
वो उपचार न रही।
इलाज के नाम पर ,
प्रतिरोध क्षमता खो रही ।।
वो खान न रहा ,
वो पान न रही।
स्वाद के चक्कर में ,
तंदुरुस्ती खो रही ।।
वो देशी न रहा ,
वो स्वाभिमान न रही।
चमक-दमक के चकर में ,
वो जमीर खो रही ।।
वो दर्शन न रहा ,
वो ज्ञान न रही।
अविश्वास के चक्कर में ,
वो सम्पदा खो रही ।।
वो सभ्यता न रहा ,
वो संस्कृति न रही।
अपना तुलना दूसरों से कर ,
वो सम्मान खो रही ।।
हमारी विरासत को ,
दूसरे अपना रहे।
उसका पेटेंट करा ,
अपना बता रहें ।।
समझ जाओ बुझ जाओ ,
होशियार हो जाओ।
लोग तुझे मिटा न दे ,
तैयार हो जाओ ।।