गुस्ताखियों से अपनी सिला पूछ रहा हूँ ।
नादाँ हूँ जो माज़ी का पता पूछ रहा हूँ ।।
वादा-ए-वस्ल करके हरदम वो तोड़ती है ।
है कौन सी ये उसकी अदा पूछ रहा हूँ ।।
वो इस तरह गयी थी मेरी ज़िन्दगी से यारों ।
मुझसे हुई थी क्या अब ख़ता पूछ रहा हूँ ।।
दिल तोड़ के गया है वो कौन से जहां में ।
उसको भला अब क्या दूं सज़ा पूछ रहा हूँ ।।
— अमिताभ आलेख
उम्दा ग़ज़ल ………….बहुत अच्छे अमिताभ जी !!
अनेक धन्यवाद धर्मेन्द्र जी।
खूबसूरत रचना आलेख
शुक्रिया जनाब ।