ये मोहब्बत करने वाले हमें क्या सिखा गए।
तुमको तो दीवाना हमे शायर बना गए।।
जवान होती बेटियां और बूढ़े होते माँ-बाप।
इंसान के ईमान को कायर बना गए।।
मुफ़लिसी में जो धोता था किसी के झूठे बर्तन।
शहर के हालात उसे पेशेवर बना गए।।
लहू देकर के सींचे थे उसने जो दो बच्चे।
आफ़त-ए-जान उसे घर का सौदागर बना गए।।
उन तमाम हादसों को भी ‘आलेख’ का सलाम।
जो एक कमबख़्त को बड़ा सुख़नवर बना गए।।
— अमिताभ ‘आलेख’
बहुत खूब साहब़ और लिखिए
धन्यवाद अरुण जी. बस आप लोग प्यार देते रहिये और हम लिखते रहेंगे.
बेहतरीन रचना आलेख
बहुत बहुत शुक्रिया शिशिर जी।