तेरा उड़ता आँचल
तपते थार में बरगद की छाँव सा
स्नेहसिक्त स्पर्श तेरा
गंगाजल की बूँद सा
थामे तेरी अगुँली
मैं दुर्गम मग तय कर पाऊँ
जो तू ना हो साथ मेरे
नीरव तम में घिर जाऊँ
सागर के भीषण झंझावत में
जब जीवन नैया डोले
विश्वास भरी तेरी वाणी
कानों में अमृत घोले
‘प्रकाश-स्तम्भ’ मेरी राहों की
पथ-प्रदर्शक मेरी रक्षक !
जीवन जय-पराजय तुझे समर्पित
जननी मेरी तेरी जय ! तेरी जय !
“मीना भारद्वाज”
मातृत्व को समर्पित सुन्दर रचना …….!!
आभार निवातियाँ जी !!