भारतीय टीम की जीत पर जश्न मनाते पंकज की हत्या से आहत होकर जेहादी अत्याचारों के प्रति आग उगलती तथा सोये हिन्दुओं को जगाने की कोशिश करती मेरी ताजा रचना —
रचनाकार – कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
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कहाँ गये अख़लाक़ के साले और जिया के रिश्तेदार ?
कहाँ मानव-अधिकार के रक्षक और शान्ति के ठेकेदार?
कहाँ गया है झाड़ू वाला धरनाधारी कजरुद्दीन ?
कहाँ गया लाखों की चेक बाँटने वाला अखिलुद्दीन ?
कहाँ गयीं सुश्री जो कहतीं गुंडे भगवाधारी हैं ?
अब क्यों ना कहती है ये मोमिन ही अत्याचारी हैं ?
कहाँ विदेशी वाला की धुन पर नचने वाले प्यादे ?
राहुल और सिंधिया जैसे नीच नपुंसक शहजादे ?
कहाँ अगुआरे गैंग वापसी कहाँ कलम के गये दलाल ?
मुस्लिम पर रोने वाले को हिंदू पर क्यों नहीँ मलाल ?
कहाँ गया अब मोदीजी का छप्पन इंची सीना है ?
भगवा राज़ हुआ भारत में फिर क्यों मुश्किल जीना है ?
लगता तुम भी तुष्टिकरण की गलियों में हो घूम रहे
सूरज हो फिर अंधकार के दरवाजे क्यों चूम रहे ?
यूँ लगता है आज तंत्र भी बिन पैंदी का लोटा है
कोई कम है कोई ज्यादा हर इक सिक्का खोटा है
संविधान की सहनशीलता भी अब हद से पार हुई
इसको भी क्यों सबसे प्यारी टोपी जालीदार हुई
एएमयू और दिल्ली में भी कट्टरता की मार हुई
टीम हमारी जब भी जीती लोकतंत्र की हार हुई
अब जेहादी अपराधों का बढ़ता स्तर ऊँचा है
नादिर ना नारंग मरा तो मौनी जहाँ समूचा है
एक टाँग की कीमत अब लाखों गायों से बढ़कर है
लोकतंत्र की हत्या माँ भारत के सर पे चढ़कर है
फाँसी खा ले इक कायर तो सभी मचाते हाहाकार
बिष पीते जब गऊ भक्त तो सब सो जाते पैर पसार
देश को गाली देकर कुत्ते भगत सिंह बन जाते हैं
गऊ रक्षा के बलिदानी खबरों से गुम हो जाते हैं
गौरक्षा की खातिर गभरू भाई ने बलिदान दिया
सरकारों ना और मीडिया ने कोई संज्ञान लिया
मंगल की धरती पर कैसे कर्म अमंगल होते हैं
लालच की शमशीर से आरक्षण पर दंगल होते हैं
लोकतंत्र के चौथे खम्बे ने भी की घटियाई है
तुष्टिकरण की दीमक ने उसमें भी सेंध लगाई है
ऐसे ना रुक पाएगी ये बढ़ती कुत्तों वाली खाज
कितने भी दो अवसर ना आदत से आएँगे ये बाज
अब जागो भारत वीरो जो थोड़ा पौरुष बाकी हो
जिन्दा ना बच पाए बंगलादेशी हो या पाकी हो
अब राणा की चिंगारी को और जोर से भडकाओ
हिंदू को जो मारे उसको बुरी तरह से तड़पाओ
मिलकर आज उतारो सबका सेक्युलरो वाला ये भूत
मिले जहाँ भी गैंग वापसी मिलकर सभी बजाओ जूत
फ़िर कोई प्रथ्वी ना गोरी, जयचंदों से हारेगा
अब ना डर हथियार उठा ले, ज़हर, ज़हर को मारेगा
वर्ना इतना याद रहे शुरुआत सीरिया वाली है
बाग उजाड़ेगा वह जिसको तूने समझा माली है
कहे “देव” ये कविता नहीँ है इक सच्चाई काली है
कायर हिन्दू और सेक्युलर के पौरुष को गाली है
———-कवि देवेन्द्र प्रताप सिंह “आग”
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राजनितिक स्तर इस कदर गिर गया है की अब किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता देवेन्द्र जी….. सब मौकापरस्ती के लाभ उठाने में व्यस्त है !!