ग़ज़ल।वही तेरी कहानी है ।
किया गर दोस्ती हूँ तो यकीं मानो निभानी है ।
महफ़िल में रवां होकर मुझे मंजिल बनानी है ।
कहूँ मैं अज़नबी कैसे अगर तुम साथ मेरे हो ।
वही तेरी कहानी है वही मेरी कहानी है ।
जरा मैं दूर हूँ तो क्या मेरी साँसों से आ पूंछो ।
दिलो में दर्द है ठहरा छुपा आँखों में पानी है ।
न सोचों छोड़ महफ़िल को चले हम दूर जायेंगे ।
हमे भी दोस्ती की अब कोई क़ीमत चुकानी है ।
मेरे ख़ामोस रहने की कोई मजबूरियां होगी ।
मग़र हरहाल इस दिल की तुम्हे आहें सुनानी है।
महज़ दो चार दिन तक ही खुदी को रोक पाऊँगा ।
कहा न एक मानेगी बड़ी बेबस जवानी है।।
तरस आँखे भी जाती है तेरे दीदार को “रकमिश”
कहूँ क्या दर्द ही होगा वही यांदें पुरानी है ।
© रकमिश सुल्तानपुरी
अच्छी ग़ज़ल मिश्रा जी ………….!!
बहुत खूब मिश्रा जी ।